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कानपुर

‘असेंबली बम कांड’ के इस क्रांतिकारी ने UP में जगाई थी क्रांति की अलख!

भगत सिंह के साथ ‘असेंबली बम कांड’ में शामिल इस क्रांतिकारी ने स्वतंत्रता आंदोलन को संगठित करने में उल्लेखनीय कार्य किया था

कानपुरJul 20, 2016 / 01:47 pm

Kaushlendra Singh

Batukeshwar Dutt

Batukeshwar Dutt

लखनऊ। आज भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी बटुकेश्वर दत्त का निर्वाण दिवस है जिन्हें देश ने सबसे पहले 8 अप्रैल, 1929 को तब जाना, जब वे भगत सिंह के साथ केंद्रीय विधान सभा में बम विस्फोट के बाद गिरफ्तार किए गए। 18 नवम्बर, 1910 को बंगाली कायस्थ परिवार में ग्राम-औरी, जिला-नानी बेदवान (बंगाल) में जन्मे दत्त की स्नातक स्तरीय शिक्षा पी.पी.एन. कॉलेज कानपुर में सम्पन्न हुई।

1924 में कानपुर में ही इनकी भगत सिंह से भेंट हुई जो उन दिनों गणेश शंकर विद्यार्थी के पत्र ‘प्रताप’ में छद्म नाम से काम कर रहे थे और क्रन्तिकारी गतिविधियों में संलग्न थे। भगत सिंह के संपर्क में आकर बटुकेश्वर दत्त ने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के लिए कानपुर में कार्य करना प्रारंभ किया और इसी क्रम में बम बनाना भी सीखा। उन्होंने कई वर्षों तक कई स्थानों पर क्रांति का प्रचार किया, विशेषकर आगरा में। उन्होंने आगरा में स्वतंत्रता आंदोलन को संगठित करने में उल्लेखनीय कार्य किया था।

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ब्रिटिश राज्य की तानाशाही का विरोध करने के लिए जब भगत सिंह ने दिल्ली स्थित केंद्रीय विधानसभा (वर्तमान का संसद भवन) बम फेंकने की योजना बनाई तो अपने साथी के रूप में उन्होंने दत्त का चुनाव किया। 8 अप्रैल, 1929 को लोगों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए इन दोनों द्वारा बम विस्फोट बिना किसी को नुकसान पहुंचाए सिर्फ अपनी बात को प्रचारित करने के लिए और भगत सिंह के शब्दों में बहरों के कान खोलने के लिए किया गया। उस दिन भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार की ओर से पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल लाया गया था, जो इन लोगों के विरोध के कारण एक वोट से पारित नहीं हो पाया।

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इस घटना के बाद बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। 12 जून, 1929 को इन दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास काटने के लिए काला पानी जेल भेज दिया गया। जेल में ही उन्होंने 1933 और 1937 में ऐतिहासिक भूख हड़ताल की। सेल्यूलर जेल से 1937 में बांकीपुर केन्द्रीय कारागार, पटना में लाए गए और 1938 में रिहा कर दिए गए। काला पानी से गंभीर बीमारी लेकर लौटे दत्त फिर गिरफ्तार कर लिए गए और चार वर्षों के बाद 1945 में रिहा किए गए। आजादी के बाद नवम्बर, 1947 में अंजली दत्त से शादी करने के बाद वे पटना में रहने लगे।

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आजादी के बाद भी नहीं बदले हालात

देश की आजादी के लिए तमाम पीड़ा झेलने वाले क्रांतिकारी एवं स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त का जीवन भारत की स्वतंत्रता के बाद भी दंश, पीड़ाओं, और संघर्षों की गाथा बना रहा और उन्हें वह सम्मान नहीं मिल पाया जिसके वह हकदार थे। आजादी की खातिर 15 साल जेल की सलाखों के पीछे गुजारने वाले बटुकेश्वर दत्त को आजाद भारत में रोजगार मिला एक सिगरेट कंपनी में एजेंट का, जिससे वह पटना की सड़कों पर खाक छानने को विवश हो गये। उन्होंने कुछ और काम भी अपने भरण पोषण के लिए किया पर दुर्भाग्यवश असफलता ही हाथ लगी और उनका जीवन अभावों से ग्रसित रहा।

दोस्त के लेख ने दिलाया बेहतर इलाज

बटुकेश्वर दत्त के 1964 में अचानक बीमार होने के बाद उन्हें गंभीर हालत में पटना के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उन्हें लावारिसों की तरह उनके भाग्य पर छोड़ दिया गया। इस पर उनके मित्र चमनलाल आजाद ने एक लेख में लिखा, क्या दत्त जैसे कांतिकारी को भारत में जन्म लेना चाहिए, परमात्मा ने इतने महान शूरवीर को हमारे देश में जन्म देकर भारी भूल की है। खेद की बात है कि जिस व्यक्ति ने देश को स्वतंत्र कराने के लिए प्राणों की बाजी लगा दी और जो फांसी से बाल-बाल बच गया, वह आज नितांत दयनीय स्थिति में अस्पताल में पड़ा एड़ियां रगड़ रहा है और उसे कोई पूछने वाला नहीं है।

इसके बाद सत्ता के गलियारों में हड़कंप मच गया और 22 नवंबर 1964 को उन्हें इलाज के लिए दिल्ली लाया गया। बाद में पता चला कि दत्त बाबू को कैंसर है और उनकी जिंदगी के चंद दिन ही शेष बचे हैं। भीषण वेदना झेल रहे दत्त अपने चेहरे पर शिकन भी न आने देते थे।

ये थी बटुकेश्वर की आखिरी इच्छा

पंजाब के मुख्यमंत्री रामकिशन जब दत्त से मिलने पहुंचे और उन्होंने पूछ लिया, हम आपको कुछ देना चाहते हैं, जो भी आपकी इच्छा हो मांग लीजिए। छलछलाई आंखों और फीकी मुस्कान के साथ उन्होंने कहा, हमें कुछ नहीं चाहिए। बस मेरी यही अंतिम इच्छा है कि मेरा दाह संस्कार मेरे मित्र भगत सिंह की समाधि के बगल में किया जाए।

Batukeshwar Dutt

17 जुलाई को वह कोमा में चले गये और 20 जुलाई 1965 की रात नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में एक बजकर 50 मिनट पर दत्त बाबू इस दुनिया से विदा हो गये। उनका अंतिम संस्कार उनकी इच्छा के अनुसार, भारत-पाक सीमा के करीब हुसैनीवाला में भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव की समाधि के निकट किया गया।

आज उनके निर्वाण दिवस पर उन्हें कोटिशः नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि!

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