कानपुर के शिवाला में रावण का मंदिर, यूपी में इकलौता देश में रावण के चार मंदिर हैं और कानपुर का रावण मंदिर यूपी में इकलौता है। कानपुर के दर्जनों स्थानों पर विजयदशमी के दिन रावण दहन होगा, वहीं शिवाला इलाके में दशानन पूजा जाएगा।शक्ति के प्रतीक के रूप में सुबह नौ बजे से लंकाधिराज रावण की पूजा-अर्चना और आरती की शुरू होगी जो देर रात तक चलेगी। इस मंदिर का नाम ‘दशानन मंदिर’ है और इसका निर्माण 1868 में मुख्य मंदिर निर्माण के लगभग पचास साल बाद का माना जाता है। मंदिर के निर्माण के वर्ष को लेकर जानकारों में मतभेद है। मंदिर की देखरेख करने वाले प्यारेलाल बताते हैं कि सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु यहां एक दिन के लिए आते हैं और रावण के दर्शन करते हैं।
सिर्फ विजयदशमी के दिन खुलते हैं मंदिर के कपाट इस मंदिर के पट साल में सिर्फ एक दिन के लिए खोले जाते हैं। दशानन मंदिर के दरवाजे साल में केवल एक बार दशहरे के दिन ही सुबह नौ बजे खुलते हैं और मंदिर में लगी रावण की मूर्ति का पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ करने के बाद आरती उतारी जाती है। शाम को दशहरे में रावण के पुतला दहन के समय से पहले इस मंदिर के दरवाजे अगले साल तक के लिए बंद कर दिए जाते है।मान्यता है कि इस मंदिर मे दशहरा पर्व के दिन लंकाधिराज रावण आते हैं और पूरे 12 घंटे तक मंदिर में रहते हैं।
उन्नाव के गुरुप्रसाद ने कराया था मंदिर का निर्माण रावण के मंदिर में होने वाले कार्यक्रमों के संयोजक के के तिवारी बताते हैं कि शिवाला इलाके में कैलाश मंदिर परिसर में मौजूद विभिन्न मंदिरों में भगवान शिव मंदिर के पास ही लंका के राजा रावण का मंदिर है।इसका निर्माण महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने कराया था, जो उन्नाव के रहने वाले थे। दशहरे के दिन करीब तीस हजार भक्त रावण पूजा अर्चना करने के लिए आएंगे, जिसके लिए तैयारी की गई है। रावण मंदिर के बाहर माला-फूल की दुकान लगाने वाले रोहित माली बताते हैं कि दशहरे के दिन साक्षात लंकाधिराज रावण मंदिर में आते हैं।
बुराइयों के अंत का सन्देश रावण का जन्म भी विजयदशमी के दिन ही हुआ जाता था। इस तरह माना जा सकता है कि रावण के दहन के आयोजनों के साथ ही इस मंदिर में उसके जन्मदिन को मनाया जाता है। इसके साथ ही रावण का दर्शन इस बात का सन्देश देता है कि अहंकार से युक्त होने पर ज्ञानी व्यक्तियों का भी अंत हो जाता है। इस मौके पर लोग रावण के दर्शन कर यह सीख लेते हैं कि जिन बुराइयों के कारण रावण का अंत हुआ था, उन बुराइयों को अपने जीवन में न उतरने दें।