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कानपुर

मुख्यमंत्री जी घोटाले का गढ़ बना केडीए, करोड़ों रूपए सरकारी बाबुओं ने डकारे

योगी सरकार के दौरान दूसरा सबसे बड़े घोटाले का खुलासा, 72 करोड़ रूपए की सड़कें कागज में बनीं

कानपुरOct 04, 2018 / 11:22 am

Vinod Nigam

kda suspended five ameen and action taken on- ehsildar in huge scam

मुख्यमंत्री जी घोटाले का गढ़ बना केडीए, करोड़ों रूपए सरकारी बाबुओं ने डकारे

कानपुर। केडीए घोटाले का गढ़ बन चुके हैं। यहां पर पैसे देकर कानूनी और गैर कानूनी कार्य दलालों के जरिए बदस्तूर जारी हैं। 2012 में 225 करोड़ की फेराफेरी के बादं करीब 72 करोड़ रूपए डकारने का मामला सामने आया है। जिस पर केडीए वीसी ने आरोपी पांच अमीनों को निलंबित करने के साथ ही तहसीलदार और अभियंताओं के खिलाफ विभागीय कार्रवाई करने के लिए शासन को पत्र लिखा है। जिसके चलते कमाई की दुकान केडीए में हड़कंप मचा हुआ है और अधिकारी अपने को बचाने के लिए सफेदपोशों की शरण में जाकर मदद की गुहार लगा रहे हैं। केडीए के रिटायर्ड अभियंता राजीव शुक्ला बताते हैं कि तीन दशक पहले यहां पर करप्शन की शुरूआत हुई और 2018 तक जारी है। अधिकारी केडीए में तैनाती के लिए मुहंमागी रकम सफेदपोशो को देकर यहां जमकर उगाही करते हैं। शुक्ला ने कहा कि सीएम योगी आदित्यनाथ अगर पिछले दस सालों के कार्यो की जांच करा लें तो सैकड़ों करोड़ के घोटाले खुलकर सामने आ जाएंगे और कई आईएएस जेल के पीछे होंगे।

वीसी ने कराई जांच तो खुली पोल
केडीए को कमाई की दुकान के नाम से लोग पुकारते हैं। यहां पैसे देकर कानून और गैर काननी कार्य दलालों के जरिए कई सालों से हो रहे हैं। भष्टाचार पर नकेल कसने के लिए कई सरकारों ने कदम उठाए पर सरकारी बाबुओं के चलते वो कामयाब नहीं हो सकी। 6 साल के बाद केडीए में 72 करोड़ रूपए का घोटाला सामने आया है। यहां तहसीलदार, अभियंता और अमीनों ने मिलकर कागजों में सड़क का निर्माण करा सारा पैसे डकार गए। केडीए वीसी वीसी किंजल सिंह के समाने जैसे ही घोटाले की फाइल आई तो उन्होंने इसकी जांच कराई। जांच में पांच अमीन, अभियतां और तहसीलदार दोषी पाए गए। वीसी ने पांचों अमीनों को तत्काल निलंबित कर तहसीलदार और अभियंताओं के खिलाफ विभागीय कार्रवाई के लिए शासन को पत्र लिखा है।

नहीं बनी सड़क, रकम हजम
केडीए ने बैरी अकबरपुर बांगर गांव की जमीन पर इंदिरा नगर योजना का विकास किया था। आरजी संख्या 1090 की 5838.76 वर्ग मीटर जमीन पर अधिग्रहण केडीए ने नहीं किया था। इस जमीन के मालिक मुंशीलाल थे। 1963 में यह जमीन सिद्ध गोपाल कपूर को बेंच दी गई। 1998 में केडीए के तत्कालीन वीसी ने यह जमीन केडीए की न होने संबेधी अनापति प्रमाणपत्र भी जारी कर दिया था। 2002 में यह जमीन हरि मोहन गुप्ता व इसके आधा भाग 2004 में रमेश चंद्र गुप्ता ने खरीद लिया। इस दौरान केडीए ने जमीन पर सड़क के निर्माण का प्रस्ताव किया। दोनों खरीदार केडीए आए और शपथपत्र देकर सड़क निर्माण के लिए रजामंदी दे दी। पर इसके बदले उन्होंने दूसरी जगी जमीन की मांग की। लेकिन केडीए के अधिकारियों के चलते सड़क नहीं बनीं और न ही दोनों पीड़ितों को जमीन दी गई। रमेश चन्द्र गुप्ता आदि द्वारा हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई, जिसके क्रम में पूर्व उपाध्यक्ष द्वारा प्रत्यावेदन निस्तारित कर दिया गया। उसमें साफ कहा कि कोई सड़क नहीं बनाई गई है।

गलत जानकारी देकर किया गुमराह
वर्ष 13 अक्टूबर 2014 को तत्कालीन उपाध्यक्ष के समक्ष अमीन व तहसीलदार ने भ्रामक व तथ्यों के विपरीत आख्या प्रस्तुत की गई कि भूमि का उपयोग प्राधिकरण द्वारा इंदिरा नगर, मकड़ीखेड़ा रोड में कर लिया गया है। भूमि के बदले भूमि दिए जाने का प्रस्ताव बोर्ड में रखा जाए। केडीए उपाध्यक्ष के अनुमोदन लेकर बोर्ड में प्रस्ताव रख दिया। बोर्ड ने आदेश दिए कि एक समिति बनाकर स्थल का निरीक्षण कर आख्या अगली बैठक में दी जाए। अमीन, तहसीलदार व अभियंताओं की समिति ने निरीक्षण करके कहा कि संबंधित भूमि का प्राधिकरण ने प्रयोग कर लिया है। इस बीच हरिमोहन गुप्ता ने हाईकोर्ट में भूमि के मामले में याचिका दायर की। इसमें तहसीलदार ने कहा कि भूमि का प्रयोग केडीए ने 1982 में इंदिरा नगर योजना में कर लिया है। कोर्ट ने 12 सितंबर 2017 को डीएम को आदेश दिए कि दो माह के अंदर प्रतिकर दिया जाए या प्रतिकर निर्धारित किया जाए। प्रतिकर न मिलने पर याची ने हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर की।

कोर्ट के आदेश के बाद जांच
हरिमोहन नकी याचिका के बाद कोर्ट ने इस मामले की जांच के आदेश दिए। जिस पर केडीए वीसी किंजल सिंह ने 14 सितंबर 2018 को जांच बैठाई। जांच समिति में तहसीलदार आत्मा स्वरूप, व्यास नारायण उमराव, वित नियंत्रक विनोद कुमार लाल, विशेष कार्याधिकारी अंजूलता और मुख्य अभियंता डीसी श्रीवास्तव को शामिल किया गया। सचिव की अगुवाई में जांच कमेटी ने दस्तावेजों को खंगाला तो सारी बात का खुलासा हो गया। जांच में पता चला कि अभियंता, अमीन व तहसीलदार ने गलत रिपोर्ट के जरिए 72 करोड़ रूपए का गमन किया है। वीसी ने तत्काल एक्शन लेते हुए अमीन संतोष कुमार, रामलाल, अंकुर पाल, रमेश चन्द्र प्रजापति और सोहन लाल को निलंबित कर विभागीय कार्रवाई शुरू की है। तहसीलदार बीएन पाल, प्रदीप रमन व किशोर गुप्ता के खिलाफ आरोप पत्र गठित करके आयुक्त व सचिव राजस्व परिषद को विभागीय कार्यवाई के लिए पत्र लिखा है।

225 करोड़ की हुई थी हेराफेरी
घोटालों का गढ़ बन चुके केडीए में सबसे बड़ा मामला 2012 में सामने आया था। जेके रेयान को फ्रीहोल्ड करने की फाइल 2012 में गायब हो गई थीं। इस चर्चित मामले में केडीए के तत्कालीन उपाध्यक्ष ओएन सिंह और पूर्व नगर नियोजक नितिन मित्तल भी फंसे थे। पर आज तक इन पर कोई कार्रवाई नहीं की। दरअसल सत्तर के दशक में जेके कंपनी ने कपड़ा बनाने के लिए जाजमऊ में जेके रेयान नाम से मिल शुरू की थी। यह मिल औद्योगिक श्रेणी की 90.81 एकड़ (3,63,240 वर्ग मीटर) भूमि में है। नौ फरवरी 2011 को यह भूमि फ्रीहोल्ड करा ली गई। नियमतः औद्योगिक भूमि को फ्रीहोल्ड कराने के लिए शासन की अनुमति लेनी होती है लेकिन जेके रेयान के मामले में ऐसा नहीं हुआ। आरोप यह भी है फ्रीहोल्ड करते वक्त वर्तमान दर के मुताबिक 28 प्रतिशत अनिर्माण शुल्क देय था जो नहीं लिया गया। इस प्रकार करीब 225 करोड़ रुपये की वित्तीय अनियमितता पाई गई।

रानीगंज औद्योगिक में भी घोटाला
यहां की सत्तर एकड़ से अधिक जमीन मेसर्स सिंह इंजीनियरिंग वर्क्स (प्राइवेट) लिमिटेड को पट्टे पर दी गई थी। कंपनी के दिवालिया होने पर कोर्ट के आदेश पर जमीन नीलाम करा दी। अब यहां 177 प्लाट पर छोटी-बड़ी फैक्ट्रियां चल रही हैं लेकिन केडीए से किसी का नक्शा पास नहीं है। फैक्ट्री मालिकों का कहना है उनके पास नक्शे की मूल प्रति है जबकि केडीए के पास न नक्शा है न ले आउट और साइट प्लान। वहीं गंगागंज क्षेत्र में करीब चार दर्जन प्लाट की फर्जी रजिस्ट्रियां कर डाली गईं। ये प्लाट आवंटित किसी और के नाम पर थे और रजिस्ट्रियां किसी और के नाम कर दी गई। इस खेल में केडीए के भ्रष्ट बाबुओं का रैकेट शामिल था। मामले का खुलासा होने पर छानबीन हुई लेकिन रजिस्ट्री से संबंधित कोई दस्तावेज नहीं मिले।

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