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कानपुर

Kargil Vijay Diwas: कई गोलियां खाकर भी दुश्मनों से लड़ते रहे शहीद विजय पाल यादव

कारगिल युद्ध के दौरान तोलोलिंग की लड़ाई के दौरान नौबस्ता खाड़ेपुर निवासी शहीद विजय पाल यादव ने दुश्मनों की गोलियों की परवाह किए बिना आगे बढ़ते गए, जो उनके रास्ते में आया उसे मौत के घाट उतारते गए। 

कानपुरJul 26, 2017 / 09:09 pm

shatrughan gupta

 Shahid Vijay Pal Yadav

Shahid Vijay Pal Yadav

विनोद निगम
कानपुर. पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कारगिल की पहाडिय़ों पर कब्जा कर लिया था, इसकी भनक जब भारतीय सेना को हुई और उन्हें खदेडऩे के लिए ऑपरेशन विजय चलाया। आज ही के दिन भारतीय सेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़कर भारतीय जमीन से बाहर किया था, जिसे हर साल href="https://www.patrika.com/topic/kargil/" target="_blank" rel="noopener">कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। ऑपरेशन विजय नाम के इस मिशन में भारत माता के सैकड़ों सपूत शहीद हुए थे। इन वीर सपूतों ने अपनी जान की परवाह किए बिना देश की आन-बान-शान के लिए इस जंग में अदम्य साहस एवं वीरता का परिचय दिया। 

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देश की सुरक्षा पर अपने प्राण न्यौछावर करने वालों में कानुपर के सपूत भी पीछ नहीं हटे। कारगिल युद्ध के दौरान तोलोलिंग की लड़ाई के दौरान नौबस्ता खाड़ेपुर निवासी शहीद विजय पाल यादव ने दुश्मनों की गोलियों की परवाह किए बिना आगे बढ़ते गए, जो उनके रास्ते में आया उसे मौत के घाट उतारते गए। इसी दौरान उनके शरीर पर कई गोलियां लगीं और देश का यह सपूत शहीद हो गया। शहीद के पार्थिक शरीर पर फूल अर्पित करने कई राजेनेता आए और कई वादे किए, लेकिन वो आज तक जमीन पर नहीं दिखे। विजय दिवस पर एक भी सरकारी अफसर शहीद विधवा की सुध लेने नहीं गया। 


कारगलि रखा पेट्रोल पंप का नाम
पाकिस्तानी सेना और आंतकवादियों ने कारगिल की पहाडिय़ों पर कब्जा कर लिया। दुश्मनों को इन पहाडिय़ों से खदेडऩे के लिए सेना ने विजय ऑपरेशन चलाया। 18 साल पहले आज के ही दिन 26 जुलाई को सेना ने पाकिस्तानी को खदेड़कर कारगिल युद्ध फतह किया था। कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवान विजय पाल के परिवार को सरकार ने सन 2000 में शहीद की पत्नी सुषमा यादव को पेट्रोल पम्प आवंटित किया था। सुषमा ने इसे भारतीय सेना को समर्पित करते हुए इसका नाम रखा कारगिल विजय पेट्रोल पम्प। पांच साल बाद ही पेट्रोलियम कम्पनी ने तकनीकी आधार पर पेट्रोल पम्प सीज कर दिया और अल्प शिक्षित सुषमा कुछ समझ भी नहीं पायीं। इसके चलते वो परिवार समेत सड़क पर आ गईं। इस दौरान शहीद के बेवा ने दूसरों के घरों पर काम किया। सुषमा बताती हैं कि कांग्रेस विधायक अजय कपूर, कांग्रेस नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल, राजाराम पाल के पास जाकर फरियाद की, लेकिन किसी ने एक न सुनी। 

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12 साल के बाद मिली जीत
शहीद विजय पाल तो कारगिल की चोटियों में लड़ते-लड़ते शहीद हो गए, लेकिन उनके जाने के बाद परिवार 12 साल तक सरकारी तंत्र से लड़ता रहा। शहीद के साले विनय कुमार यादव बताते हैं कि यूपीए सरकार बनते ही विजय पेट्रोल पंप को सील कर दिया गया। हम और दीदी लखनऊ से लेकर दिल्ली तक अपनी फरियाद लेकर गए, पर कहीं सुनवाई नहीं हुई। 12 साल तक हमने यह लड़ाई लड़ी और कोर्ट के निर्णय के बाद हमारी जीत हुई। शहीद की पत्नी कहती हैं, नेता-अफसर मौज करते रहे और हमारी नन्हीं बेटी को कई रातें भूखे सोकर गुजारनी पड़ी। 

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1997 में सेना में भर्ती हुए थे विजय पाल 
विजय पाल यादव का जन्म फतेहपुर के अमौली ब्लॉक के झाऊपुर गांव में किसान के घर में 1976 को हुआ था। उन्होंने आइर्श इंटर कॉलेज से हाईस्कूल के साथ ही इंटरमीडिएट की पड़ाई करने के दौरान इनका चयन 1997 में सेना में हो गया। दो साल की नौकरी के दौरान इन्हें दूसरी बार कश्मीर में जाने का मौका मिला। विजय पाल कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हो गए। वो तीन भाइयों में सबसे बड़े थे। विजय पाल के बुआ के लड़के बृजेश पाल कहते हैं कि वो बचपन से ही सेना में जाने का प्रण किए हुए था। पहली भर्ती कानपुर कैंट में हुई और इनका सिलेक्शन हो गया। विजय पाल यादव स्कली स्तर की क्रिकेट प्रतियोगिताओं में भाग लेते थे। गांव में बने शहीद स्मारक के बगल में ही इनके नाम से गांववालो ने एक क्रिकेट मैदान का निर्माण करवाया है।

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