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कानपुर

मोबाइल-लैपटॉप प्रयोग करने वाले 80 फीसद लोगों को नसों का दर्द, सावधान

मोबाइल और लैपटॉप ने जहां काम को आसान कर दिया है वहीं जीवन को संकट में डाल दिया है। अधिक मोबाइल का प्रयोग करने वाले 80 फीसद लोग नसों के दर्द की चपेट में आ गए हैं। नसों के दर्द को मेडिकल शब्दों में न्यूरॉलजिया के नाम से पुकारा जाता है।
 

कानपुरAug 22, 2022 / 05:56 pm

Sanjay Kumar Srivastava

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मोबाइल-लैपटॉप प्रयोग करने वाले 80 फीसद लोगों को नसों का दर्द, सावधान

मोबाइल और लैपटॉप ने जहां काम को आसान कर दिया है वहीं जीवन को संकट में डाल दिया है। अधिक मोबाइल का प्रयोग करने वाले 80 फीसद लोग नसों के दर्द की चपेट में आ गए हैं। नसों के दर्द को मेडिकल शब्दों में न्यूरॉलजिया के नाम से पुकारा जाता है। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज कानपुर की एक स्टडी में हुए खुलासे ने सबके कान खड़े कर दिए। मेंडिकल कॉलेज के ऑर्थोपेडिक और एनेस्थीसिया विभाग ने 170 मरीजों पर अपनी स्टडी की। जिनमें 13 से 17 साल के किशोर, 22 से 49 साल के युवा थे। ऐसे मरीजों के हाथों और कोहनी में असहनीय दर्द की शिकायतें थी।
लैपटॉप – मोबाइल का प्रयोग दस गुना बढ़ा

वर्क फ्रॉम होम के नए चलन ने लैपटॉप और मोबाइल का प्रयोग करीब दस गुना बढ़ दिया है। इसके अधिक प्रयोग करने से गर्दन से लेकर कोहनी-पंजे तक दर्द शुरू हो गया। कंधे में सुन्नता का अहसास होने लगा। बड़ी संख्या में लोग डॉक्टरों के पास पहुंचने लगे। यह देखकर डाक्टरों ने एक स्टडी शुरू की।
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सी 5.6, सी 6.7 की नर्व रूट पर सबसे अधिक दबाव

दर्द से पीड़ित मरीजों को पहले पेन किलर देने के बावजूद दर्द खत्म नहीं हुआ। एमआरआई और सीटी स्कैन कराया गया तो पता चला कि, मोबाइल-लैपटॉप में घंटों काम करने से गर्दन की बल्ज की वजह से कई नर्व रूटों पर दबाव पाया गया। इनमें सबसे ज्यादा दबाव गर्दन की सी 5.6, सी 6.7 की नर्व रूटों पर मिला।
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तरीका बदलने से मिली राहत

स्टडी में पता चला कि, अधिक मोबाइल प्रयोग करने से कंधों और कोहनी में पीड़ा का ग्राफ हर दिन बढ़ता मिला। 80 फीसदी में न्यूरॉलजिया की बीमारी सामने आई। डॉक्टरों के अनुसार, जब पॉश्चर बदला गया और मोबाइल-लैपटॉप का इस्तेमाल कम किया गया तो नसों की लोकेशन कुछ ठीक हो पाईं।
सभी चपेट में, सबसे अधिक युवा

अध्ययन में 37 फीसदी में गंभीर सर्वाइकल डिजेनेरेटिव Disc और सर्वाइकल Disc प्रोलैप्स बीमारी भी पाई गई है। 70 फीसद युवा और छह फीसद किशोरों के अलावा 11 फीसद युवतियां-महिलाएं भी पीड़ित मिलीं। कई गर्दन के दर्द या जकड़न से प्रभावित थे, जिनमें टेक्स्ट नेक सिंड्रोम मिला।
अप्राकृतिक दबाब पड़ता – डॉ प्रग्नेश कुमार

हड्डी रोग विभाग जीएसवीएम सहायक प्रोफेसर डॉ प्रग्नेश कुमार ने कहाकि, मोबाइल, लैपटॉप का अधिक प्रयोग करने पर, सीधे या टेढ़े बैठने पर गर्दन के ऊपर पांच किलो वजन के बराबर का भार पड़ता है। यह एक वयस्क के सिर के वजन के बराबर है। पर जैसे-जैसे गर्दन को आगे की तरफ झुकाया जाता है यह वजन कई गुना बढ़ जाता है। मोबाइल पर सिर झुकाकर अधिक देर तक काम करने से गर्दन की हड्डियों पर अप्राकृतिक दबाब पड़ता है। जिस वजह से मांसपेशियां थकान महसूस करती हैं। सिर दर्द, कंधे में दर्द, जबड़े में दर्द या सर्वाइकल स्पांडिलाइटिस जैसे लक्षण मिलते हैं। कई बार तो गर्दन के पीछे उभार हो जाता है।
अलर्ट होना जरूरी है – डॉ. चंद्रशेखर

जीएसवीएम एनेस्थीसिया एंड हेड पेन क्लीनिक प्रोफेसर डॉ. चंद्रशेखर ने बताया कि, 20 मरीजों की पेन क्लीनिक में हर दिन न्यूरॉलजिया के दस रोगी आ रहे हैं। अधिकतर गर्दन की Disk सी 5.6, 6.7 से परेशान हैं। अब अलर्ट होना जरूरी है नहीं तो दूसरी समस्याएं पैदा हो जाएगी।
सुझाव :-

मोबाइल की पोजिशन आंखों पर लाने से दर्द कम।
नियमित व्यायाम से गर्दन और कमर दर्द में राहत।
लैपटॉप के प्रयोग में गर्दन, कमर एक लाइन में जरूरी।
बीच-बीच में उठकर टहलना जरूरी।

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