आजादी के दौरान यही कॉलेज क्रांतिकारियों के लिए शरणस्थली बना हुआ था। यहीं पर बैठकर उनकी योजनाएं तैयार होती थीं। प्राचार्य डॉ. अमित श्रीवास्तव बताते हैं कि तत्कालीन हिंदी विभागाध्यक्ष पं. मुंशीराम शर्मा खुलकर क्रांतिकारियों के लिए काम करते थे। वे ही भगत ङ्क्षसह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, रामप्रसाद बिस्मिल जैसे क्रांतिकारियों को निर्देश दिया करते थे।
क्रांतिकारियों ने काकोरी कांड की योजना इसी कॉलेज में बैठकर तैयार की थी। जिसके बाद शाहजहांपुर में इसी तैयारी को दोहराया गया और फिर नौ अगस्त १९५२ को आजाद, बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, योगेश चंद्र चटर्जी, प्रेमकृष्ण खन्ना, मुकुंदीलाल, विष्णुशरण दुब्लिश ने अपने अन्य साथियों के साथ मिलकर काकोरी में अंग्रेजों की ट्रेन को लूट लिया था।
जंग-ए-आजादी के दौरान इस कॉलेज से परमट-बिठूर के लिए एक सुरंग थी। जिसमें बैठकर क्रांतिकारी बम बनाते थे और यही सुरंग क्रांतिकारियों के लिए शरणस्थली थी। जिसका अंग्रेजों को पता नहीं था। अगर कभी ब्रिटिश पुलिस क्रांतिकारियों की तलाश में कॉलेज आती थी तो इसी सुरंग के जरिए क्रांतिकारी बचकर निकल जाते थे।
डीएवी कॉलेज की कई बातें इसे अपने आप में अनोखा बनाती हैं। यही एक ऐसा इकलौता कॉलेज है जहां नाइजीरिया, भूटान, बांगलादेश, मलेशिया, नेपाल, अफगानिस्तान, श्रीलंका के छात्र १९९२ तक यहां पढऩे आते थे। यहां का डिजाइन सर सुंदरलाल ने ब्रिटिश इंडियन शैली पर तैयार किया था और यहां का सेंट्रल हाल बिना किसी भी पिलर और सरिया के सिफ ईट-गारे के दम पर आज तक टिका हुआ है।