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कानपुर

कल्याण सिंह के मर्डर की ली थी सुपारी, श्रीप्रकाश ढेर पर बच गया था बजरंगी

माफिया डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला और मुन्ना बजरंगी के खात्में के लिए एसटीएफ का गठन, कानपुर के इंद्रजीत तेवरिया और अभय सिंह को मिली थी जगह

कानपुरJul 11, 2018 / 03:43 pm

Vinod Nigam

Don Munna Bajrangi and shri prakash shukla unknown facts in Kanpur

कल्याण सिंह के मर्डर की ली थी सुपारी, श्रीप्रकाश ढेर पर बच गया था बजरंगी

कानपुर। यूपी की पहली एसटीएफ में जगह पाने वाले और 50 अपराधियों का एनकाउंटर करने वाले आजाद नगर निवासी रिटायर्ड सीओ इंद्रजीत तिवारिया अब इस दुनिया में नहीं रहे। लेकिन पूर्व सीएम कल्याण सिंह के सबसे भरोसमंद अफसरों में से वह एक थे। 90 के दशक में पूर्वान्चल अपराधियों का गढ़ माना जाता था और लोग किसी का काम तमाम कराने के लिए यहां के डॉन के पास जाकर सुपारी दिया करते थे। लेकिन एक ऐसा सुपारी किलर था, जिसने सूबे के मुखिया की जान का सौदा छह लाख में कर लिया। इसकी भनक तत्कालीन सीएम कल्याण सिंह को हुई तो उन्होंने प्रदेश से अपराधियों को खत्म करने के लिए एसटीएफ का गठन किया। इसकी कमान आईपीएस अफसर अरूण कुमार को सौंपी गई। अरूण कुमार की टीम में कानपुर के आजाद नगर निवासर इंस्पेक्टर इंद्रजीत तेवतिया को जगह दी गई थी। एसटीएफ की टीम आधुनिक असलहो से लैस होकर निकल पड़ी और एक-एक कर आरोपियों का काम तमाम करने लगी। इसी दौरान सूबे का सुपारी किलर श्रीप्रकाश शुक्ला और मुन्ना बजरंगी को एसटीएफ ने घेर लिया। श्रीप्रकाश को एसटीएफ ने ढेर कर दिया, वहीं दर्जनभर गोली लगने के बाद भी मुन्ना जिंदा रहा और अस्पताल में आंख खोल दी, जिसके चलते एसटीएफ के पैरों के तले से जमीन खिसक गई थी।
कौन था श्रीप्रकाश शुक्ला
श्रीप्रकाश शुक्ला मूलतः गोरखपुर का रहनेवाला था। पिता सरकारी स्कूल में टीचर थे। घर पर माता-पिता के अलावा एक छोटी बहन भी थी। उसके एनकाउंटर को अंजाम देने वाले टीम के सदस्य रहे आजादनगर निवासी रिटायर्ड कांस्टेबल अभय सिंह ने गली का एक मवाली उसकी बहन से छेड़छाड़ करता था। कभी राह चलते कमेंट पास करता, तो कभी बहन को देखकर सीटी बजाता। श्रीप्रकाश से यह बर्दाश्त नहीं हुआ। उसने मवाली को टोका तो वह उससे भिड़ गया और तमंचा सिर में तान गोली मार देने की धमकी दे डाली। इससे गुस्साए श्रीप्रकाश ने उसके हाथों से जमंचा छीन उसका ही मर्डर कर आयाराम-गयाराम की दुनिया में कदम बढा दिए। बताते हैं श्रीप्रकाश के खिलाफ 1993 में राकेश तिवारी की हत्या का केस दर्ज हुआ, लेकिन वह देश से भागकर बैंकाक चला गया।
सुरजभान का मिला साथ
श्रीप्रकाश शुक्ला की इनकाउंटर करने वाली टीम के सदस्य रहे अभय बताते हैं कि मर्डर करने के लगभग एक साल बाद श्रीप्रकाश इंडिया लौटा था। लौटने के बाद उसकी मुलाकात बिहार के मशहूर माफिया रहे सूरजभान से हुई। उसने उन्हीं को अपना गॉडफादर बना लिया और पूरी तरह क्राइम के रंग में रंग गया। धीरे-धीरे उसने यूपी, बिहार, दिल्ली, वेस्ट बंगाल और नेपाल में गैरकानूनी धंधे शुरू कर दिए। उसी वक्त मुन्ना बजरंगी का भी रूतबा था और उसने श्रीप्रकाश से हाथ मिला लिए। दोनों का काम करने का तरीका एक था। दोनों पैसे लेकर लोगों की हत्या करते थे। इस दौरान कानपुर में भी मुन्ना बजरंगी और श्रीप्रकाश शुक्ला ने जमीन तलाश ली और छुटभैया बदमाशों के हाथों में गन थमा गैंग में शामिल कर लिया।
हत्या के बाद एसटीएफ का गठन
1997 में तब सूबे में गैंगस्टर से विधायक (महाराजगंज) बने वीरेंद्र प्रताप शाही का दबदबा था। खुद को यूपी का नया डॉन घोषित करने के लिए श्रीप्रकाश ने उनका मर्डर कर दिया। इस मर्डर में मुन्ना बजरंगी का नाम आया था। एमएलए की हत्या के बाद लखनऊ स्थित सचिवालय में यूपी के मुख्यमंत्री, गृहमंत्री और डीजीपी की एक बैठक हुई। इसमें अपराधियों से निपटने के लिए स्पेशल फोर्स बनाने की योजना तैयार हुई। 4 मई 1998 को यूपी पुलिस के तत्कालीन एडीजी अजयराज शर्मा ने राज्य पुलिस के बेहतरीन 50 जवानों को छांट कर स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) बनाई। इस फोर्स का पहला टास्क था श्रीप्रकाश शुक्ला, मुन्ना बजरंगी, कानपुर का अतीक पहलवान, डी-2 गैंग के कई सरगानों को जिंदा या मुर्दा पकड़ना थ।
बिहार के मंत्री का कर दिया मर्डर
एसटीएफ श्रीप्रकाश की खाक छान रही थी और उधर श्रीप्रकाश शुक्ला अपने करियर की सबसे बड़ी वारदात को अंजाम देने यूपी से निकल कर पटना पहुंच चुका था। श्रीप्रकाश शुक्ला ने 13 जून 1998 को पटना स्थित इंदिरा गांधी हॉस्पिटल के बाहर बिहार सरकार के तत्कालीन मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की गोली मारकर हत्या कर दी। इस कत्ल के साथ ही श्रीप्रकाश ने साफ कर दिया था कि अब पूरब से पश्चिम तक रेलवे के ठेकों पर उसी का एक छत्र राज है। बिहार के मंत्री के कत्ल का मामला अभी ठंडा भी नहीं हुआ था कि तभी यूपी पुलिस को एक ऐसी खबर मिली जिससे पुलिस के हाथ-पांव फूल गए। श्रीप्रकाश शुक्ला ने यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की सुपारी ले ली थी।
फिर कर दिया ढेर
छह करोड़ रुपये में सीएम की सुपारी लेने की खबर एसटीएफ के लिए बम गिरने जैसी थी।एसटीएफ को पता चला कि श्रीप्रकाश दिल्ली में अपनी किसी गर्लफ्रेंड से मोबाइल पर बातें करता है। एसटीएफ ने उसके मोबाइल को सर्विलांस पर ले लिया और लोकेशन गाजियाबाद के इंदिरापुरम इलाके में मिली। 23 सितंबर 1998 को एसटीएफ के प्रभारी अरुण कुमार को खबर मिलती है कि श्रीप्रकाश शुक्ला दिल्ली से गाजियाबाद की तरफ आ रहा है। श्रीप्रकाश शुक्ला की कार जैसे ही इंदिरापुरम के सुनसान इलाके में दाखिल हुई, मौका मिलते ही एसटीएफ की टीम ने अचानक श्रीप्रकाश की कार को ओवरटेक कर उसका रास्ता रोक दिया। पुलिस ने पहले श्रीप्रकाश को सरेंडर करने को कहा लेकिन वो नहीं माना और फायरिंग शुरू कर दी. पुलिस की जवाबी फायरिंग में श्रीप्रकाश मारा गया।
मौत को मात देकर जिंदा बचा
सुपारी लेकर मर्डर करने वाला मुन्ना बजरंगी 20 साल पहले मौत को भी धोखा दे चुका था। एसटीएफ के साथ मुन्ना की करनाल के बाईपास पर मुठभेड़ भी हुई थी। एसटीएफ की टीम ने उसे करनाल के रास्ते बाईपास पर ही घेर लिया। मुन्ना बजरंगी को घिरने के पर अंधाधुंध फायरिंग शुरु कर दी। जवाबी फायरिंग में मुन्ना को पुलिस की सात गोली लगी। एसटीएफ ने उसे मरा मानते हुए पोस्टमार्टम के लिए दिल्ली में भेज दिया। एम्स अस्पताल के पोस्टमार्टम हाउस में अचानक मुन्ना की सांसें चलने लगी थी। उसे कड़ी सुरक्षा के बीच ऑपरेशन थियेटर में मुन्ना को भर्ती करवाया गया। मुन्ना के जिस्म में सात गोलियां लगी थी। इसमें से तीन निकल गई और चार जिस्म में ही रह गई, जिसे डॉक्टरों की ओर से निकाला ही नहीं जा सका था। उसे बागपत जेल भेज दिया गया।

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