ब्रेन अटैक का खतरा बच्चों को भी है। प्रदूषण की वजह से बच्चे भी ब्रेन अटैक का शिकार हो रहे हैं। दिल्ली स्थित मैक्स अस्पताल के निदेशक न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. पुनीत अग्रवाल ने बताया कि १२ साल के बच्चों को भी ब्रेन स्ट्रोक पड़ रहा है। आने वाले मामलों में १५ प्रतिशत मरीज २० से २५ साल की उम्र तक के होते हैं।
केजीएमयू लखनऊ के रेस्पेरेटरी मेडिसिन विभागाध्यक्ष डॉ. सूर्यकांत ने बताया कि अचानक तेज सांस फूलना चेतावनी का संकेत है। छोटी सांस लेना, अस्थमा, हार्टअटैक, सांस नलियां बंद होने के लक्षण है। फेफड़ों में खून का थक्का जमने से भी रोगी की सांस फूलने लगती है। वायु प्रदूषण के कारण फेफड़ों की समस्या बढ़ रही है।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन कॉलेज ऑफ जनरल प्रेेक्टिशनर्स के रिफ्रेशर कोर्स के पहले दिन डॉ. पुनीत अग्रवाल ने बताया कि डायबिटीज, कोलेस्ट्राल, मोटापे के कारण भी ब्रेन स्ट्रोक के मामले बढ़े हैं। अब ऐसी दवाएं आ गई हैं जिससे खून के थक्के को खत्म किया जा सकता है। अटैक पडऩे के बाद छह घंटे का समय अहम होता है। इस दौरान अगर इंजेक्शन लग जाए तो जान बचाई जा सकती है।
रोगी में इन लक्षणों से ब्रेन स्ट्रोक के खतरे को पहचानें। संभावित व्यक्ति से मुस्कुराने को कहें। अगर टेढ़ापन है तो तुंरत जांच कराएं। इसके अलावा उसे दोनों बाहें उठाने को कहें, एक अगर नहीं उठती है तो खतरा हो सकता है। अगर व्यक्ति सामान्य वाक्य को भी दोहराने में मुश्किल महसूस करे तो उसकी जांच जल्द कराएं।