बाड़मेर जैसलमेर के 3162 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले राष्ट्रीय मरु उद्यान में डेढ़ दशक से गोडावण की संख्या कम हो गई है। महाराष्ट्र में भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के सर्वे के दौरान गोडावण नजर नहीं आया। गुजरात में कोई नर दिख नहीं रहा। वहां एक छोटा नर बच्चा जरूर है। राजस्थान में सम, सुदाश्री, फूलिया, म्याजलार, खुड़ी, सत्तो आदि क्षेत्र में गोडावण की संख्या नहीं बढ़ रही है। जैसलमेर स्थित सोकलिया में भी खत्म हो चुका है। गोडावण संरक्षण के लिए राज्य सरकार की ओर से 26 करोड़ राशि की योजनाओं के क्रियान्वयन के बाद भी परिणाम सुखद नहीं है। जैसलमेर और कोटा में प्रजनन केन्द्र खोलने के निर्णय में देरी के कारण इसका अस्तित्व ही खत्म हो जाए।
डॉ. सिंह ने बताया कि अरब देश के मिडिल ईस्ट कतर में बस्टर्ड प्रजाति के ही अरेबियन बस्टर्ड याने हौबारा (तिलोर ) को बचाने के लिए कई प्रजनन केन्द्र विकसित किए गए हैं। गोडावण को वन्यजीव एक्सचेंज कार्यक्रम के तहत कतर के प्रजनन केन्द्र में भेजकर बचाया जा सकता है। संख्या पुन: बढऩे पर नए सिरे से इसे राजस्थान लाया जा सकता है।
जमीन पर अंडे देने के करण सरिसृप जीवों का भोजन बनने और पालतू मवेशियों के पैरों तले कुचल जाते हैं। थार रेगिस्तान में चार दशक पूर्व तक 1260 गोडावण थे जो अब 44 रहे गए हैं। विश्व में कुल 23 बस्टर्ड प्रजातियों में से चार भारत में पाई जाती हैं। आईयूसीएन की रेड डाटा सूची के अनुसार इन चार में से दो बंगाल फ्लोरीकन, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को घोर संकटग्रस्त (क्रिटिकली एंडेजर्ड ) और लैसर फ्लोरीकन संकटग्रस्त और हौबारा बस्टर्ड को असुरक्षित श्रेणी में रखा गया है।
2011—-52 2012—-60
2013—-44 2014—-40
2015—-44