गजेंद्र सिंह दहिया Rajasthan News: संयुक्त राष्ट्र संघ ने आसमान के स्ट्रेटोस्फीयर (सतह से 16 से 50 किलोमीटर ऊपर स्थित परत) में स्थित ओजोन परत को बचाने के लिए 1994 में विश्व ओजोन संरक्षण दिवस शुरू किया। क्योंकि आसमान की ओजोन अच्छी है, जो सूरज की पराबैंगनी किरणों को धरती पर आने से रोकती है, लेकिन बीते कुछ समय से धरती पर सतही ओजोन बढ़ रही है, जो बेहद हानिकारक है।
ओजोन गैस अत्यधिक क्रियाशील होने से श्वसन तंत्र की बीमारियां, अस्थमा, सीओपीडी, ब्रोंकाइटिस पैदा कर रही हैं। वायरस और बैक्टिरिया संक्रमण के बगैर लगातार खांसी आना ओजोन के कारण ही है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के अनुसार राजस्थान के लगभग सभी शहरों में ओजोन का प्रदूषण है।
एक मार्च से 31 मई 2023 के डाटा के अनुसार बड़े शहरों में जोधपुर सर्वाधिक प्रदूषित रहा। जोधपुर में इन तीन महीनों में 28 दिन ऐसे गुजरे, जब ओजोन का प्रदूषण तय मानकों से अधिक था। कोटा में 19 दिन, जयपुर में 6 दिन और उदयपुर में एक दिन ओजोन तय मानकों से अधिक थी। वैसे ओजोन प्रदूषण के मामले में छोटे शहर सर्वाधिक प्रदूषित है। झुंझुनूं में 84 दिन, बांसवाड़ा में 69 दिन, चितौडग़ढ़ में 61, चूरू में 56 और बाड़मेर में 50 दिन प्रदूषण के थे।
कैसे पैदा होती है सतही ओजोन
आसमान की ओजोन सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी विकिरणों से हमारी रक्षा करती हैं। कुछ पराबैंगनी विकिरणें जमीन पर आ जाती हैं, जो नाइट्रोजन के ऑक्साइड, कार्बनमोनोक्साइड, वाष्पशील हाईड्रोकार्बन से क्रिया करके ओजोन पैदा करती है। ये सभी कार्बनिक पदार्थ वाहनों और उद्योगों के धुएं से निकलते हैं। प्रदूषण बोर्ड के अनुसार 8 घंटे में सतही ओजोन 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए। सतही ओजोन गैस गर्मी में अधिक बनती है।
प्रदूषण होता है खांसी का कारण
जिन मरीजों के एक्स-रे, ब्लड के फिनियो टेस्ट में कुछ नहीं आता है उसकी खांसी का कारण प्रदूषण होता है। आजकल ऐसे मरीज बढ़ रहे हैं, जिनमें वायरस और बैक्टिरियां संक्रमण नहीं होता, फिर भी उन्हें खांसी आती है। दवाइयों से भी उनकी खांसी ठीक नहीं होती। ओजोन श्वसन तंत्र को नुकसान पहुंचाती है।
– डॉ. सीआर चौधरी, चेस्ट फिजिशियन, टीबी अस्पताल, जोधपुर ओजोन का प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है, लेकिन हमें अब इसके कारण में भी जाना पड़ेगा। यह एक अति क्रियाशील गैस है, जो श्वसन तंत्र को नुकसान पहुंचाती है। – प्रो एसके सिंह, सिविल इंजीनियरिंग विभाग, एमबीएम विश्वविद्यालय