सुबह के वक्त शिवलिंग में चढ़े मिलते हैं फूल
शिवराजपुर में गंगा नदी से लगभग 2 किमी दूर स्थित खेरेश्वर धाम मंदिर है। महाभारत काल से सम्बन्धित इस मन्दिर के शिवलिंग पर, केवल गंगा जल ही चढ़ता है। मान्यता है कि मन्दिर को गुरु द्रोणाचार्य जी द्वारा बनवाया गया था और यहीं उनके पुत्र अश्वत्थामा का जन्म भी हुआ था। कहते हैं कि मन्दिर में बसंत पंचमी के दिन से लेकर शिवरात्रि तक रोजाना रात्रि में 12 से 1 बजे के बीच द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा पूजा करने के लिए आते हैं। मन्दिर के पुजारी गोस्वामी जी के अनुसार रात्रि में मन्दिर बंद होने के बाद जब सुबह 4 बजे मन्दिर के पट खुलते हैं तो यहां स्थित मुख्य शिवलिंग पर जो सफेद फूल रखे जाते हैं, उनमें से एक फूल का रंग बदल कर लाल हो जाता है। मंदिर के पुजारी ने बताया कि वैसे तो अश्वस्थामा यहां पूरे साल आता है, लेकिन उसकी आहट बसंत पंचमी से लेकर शिवरात्रि तक सुनाई देती है। पुजारी के मुताबिक उनके पूर्वजों ने अश्वस्थामा को भगवान शिव की पूजा करते हुए देखा भी है।
दिखने के बाद गायब हो जाती है रोशनी
खेरेश्वर धाम मंदिर के पास रहने वाले लवकुश त्रिपाठी का दावा है कि हम 36 पीढ़ी से हैं जिन्होंने से एक ऐसे इंसान को देख रहे हैं जो आठ फुट लंबा है। नजदीक जाने पर ये इंसान तेज रोशनी के साथ कहीं ओझल हो जाता है। त्रिपाठी कहते हैं कि अश्वस्थामा के पैर गंगा के तट पर बालू पर देखे गए हैं। वह गंगा में स्नान के बाद भगवान शिव की पूजा करने आता है। वहीं मंदिर के महंत, पुजारी और गांव वालों का ऐसा दावा है कि मंदिर में सबसे पहले हर रोज खुद अश्वत्थामा सबसे पहले महादेव को जल चढ़ाने आता है, कई लोगों ने तो उसे अपनी आंखों से देखा है। यहां के लोगों का कहना है कि देर रात अचानक तेज रौशनी प्रकट होना, जोर-जोर से घंटे बजना, खड़ाऊं की आवाजें सुनाई देती हैं और जब पास जाकर देखते हैं तो एक तेज रोशनी दिखने के बाद वह गायब हो जाती है। इसी के चलते अब लोग रात के वक्त मंदिर के आसपास नहीं जाते।
पापों से मुक्ति के लिए करता है शिव की पूजा
शिवराज के खेरेश्वर धाम की मान्यता है कि द्वापर युग में यह गांव पहले गुरु द्रोणाचार्य का आरायण वन हुआ करता था। यहीं पर द्रोणाचार्य ने पांडवों और कौरवों को शस्त्र विद्या सिखायी। मंदिर के महंत आकाश पुरी गोस्वामी कहते हैं कि वह 36 पीढ़ियों से खेरेश्वर महादेव की पूजा कर रहे हैं। मंदिर के पास द्रोणाचार्य की कुटिया बनी थी। द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा भी यहीं रहा करते थे। महाभारत के युद्ध के दौरान अश्वत्थामा ने पांडवों के पुत्रों की छल से हत्या कर दी जिसके बाद भीमसेन ने अश्वत्थामा के माथे में लगी मणि निकालकर उसे शक्तिहीन बना दिया। भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया वह धरती पर तब तक पीड़ावश जीवित रहेगा जब तक स्वयं महादेव उसे उसके पापों से मुक्ति न दिला दें। तभी से ये कहा जाता है कि महादेव से मुक्ति की प्रार्थना के लिए यहां अश्वत्थामा हर रोज सबसे पहले जल चढ़ाने आता है।
अश्वस्थामा का यहीं पर है मंदिर
खेरेश्वर धाम से करीब 100 मीटर की दूरी पर अश्वत्थामा का मंदिर भी बना है। गांव के लोग अश्वत्थामा को देव के रूप में पूजते हैं इसलिए उन्हें विशेष स्थान देने के लिये मंदिर में उनकी छोटी सी मूर्ति भी स्थापित की है। अश्वत्थामा की मूर्ति के पास एक शिवलिंग भी स्थापित किया गया है। मंदिर के आसपास रहने वाले पुजारी केशव प्रसाद शुक्ल, ने बताया कि उन्होंने कई बार सफेद लिबास में लंबे चौड़े इंसान को मंदिर आते-जाते देखा है। कुछ पूछने पर वह नहीं बोलता और तेज रोशनी के साथ गायब हो जाता है। पुजारी कहते हैं कि गंगा नदी तट पर करीब चार हजार सालों से आदिकालीन आस्था के मुख्य केंद्र खेरेश्वर महादेव मंदिर का शिवलिंग स्वयंभू है। इसी स्थान पर आदि गुरु द्रोणाचार्य ने महाभारत काल में कौरवों और पांडवों को शस्त्र शिक्षा दी थी। गुरु द्रोणाचार्य की कुटी के कई अवशेष अब भी दंडी आश्रम पर खुदाई के दौरान मिलते हैं।