जल राशि अपने अंतिम छोर कच्छ के रन तक पहुंच कर वहां के दलदल में समाहित हो जाएगी। मरुगंगा के रूप में मानी जाने वाली लूणी नदी को लवणवती भी कहा जाता है। यह नदी दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में बहती हुई कच्छ के रण में मिल जाती है। इस नदी की लंबाई 495 किलोमीटर है। उद्गम स्थल से निकली जल राशि को सागरमति का नाम दिया गया।
इसके बाद गोविंदगढ़ के पास पुष्कर से आने वाली सरस्वती नदी के साथ यह जल राशि मिल जाती है। नागौर और पाली जिले को छूते हुए
जोधपुर जिले के झाक ओर कालाउना नदियों में वेग पकड़ते हुए जसवंतसागर सागर बांध को भरती है। इस मरुगंगा की खासियत यह है कि इस नदी का पानी बालोतरा तक मीठा रहता है। उसके बाद ज्यों-ज्यों नदी आगे बढ़ती है। त्यों-त्यों जल राशि में लवणीयता घुलने से पानी खारा हो जाता है।
देखते ही बनती है किसानों की खुशी
वर्ष 2007 में भले ही जसवंत सागर बांध लबालब भर चुका था, लेकिन बांध की पाळ का एक हिस्सा क्षतिग्रस्त हो जाने से पानी व्यर्थ ही बह गया। ऐसे में क्षेत्र के भू-जल स्तर पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा और दिनों दिन जल स्तर गिरता ही गया। जमीन खेती योग्य भी नहीं रही। अब जब बांध लबालब भर चुका है और कई दिनों तक चादर चलेगी। इस आशा से किसान प्रफुल्लित हैं।
बजरी माफिया ने नदी को कर दिया छलनी
बांध पर चादर चलने के 36 घंटे होने के बावजूद जल राशि बहुत धीमी गति से लूणी नदी की ओर बढ़ रही है। बजरी माफियाओं ने नदी क्षेत्र में बजरी दोहन के दौरान बड़े-बड़े गड्ढे गहराई तक कर डाले हैं। एक तरह से नदी को छलनी ही कर डाला। यही वजह है कि पानी के आगे बढ़ने की गति बहुत धीमी है।