– सबसे पहले सूरसागर क्षेत्र के कालूरामजी बावड़ी के आस-पास तेंदुआ की मूवमेंट ट्रेस हुई और सीसीटीवी में रिकॉर्ड हुआ।
– इसके बाद बालसमंद व लालसागर क्षेत्र में भी पगमार्ग मिले।
– बालसमंद क्षेत्र में वन विभाग ने एक पिंजरा भी लगाया, लेकिन उसका भी कोई खास असर नहीं हुआ।
– इसके बाद जसवंत थड़ा क्षेत्र में भी मूवमेंट की सूचना मिली तो वन विभाग की टीम ने सर्च ऑपरेशन चलाया।
– अंतिम बार सोढ़ों की ढाणी क्षेत्र में एक खेत में इसके पगमार्क मिले और होली के बाद से इसकी कोई पुख्ता सूचना नहीं है।
– ऐसे में माना जा रहा है कि वह सोढ़ों की ढाणी से आगे नहर के किनारे वाले रास्ते से फिर उसी क्षेत्र में चला गया, जहां से आया था।
– यहां की गर्मी और पहाड़ियों की बसावट तेंदुए को अपनी टेरटरी बनाने के लिए सपोर्ट नहीं करती।
– वह छुपकर रहना पसंद करता है। ऐसे में जहां ज्यादा शहरी क्षेत्र की आबादी और वाहनों की आवाजाही है, वहां अपना रहवास नहीं करता।
– अन्य क्षेत्रों की तुलना में जोधपुर के शहरी क्षेत्र के खेतों में हरियाली नहीं है, जिससे उसको असुरक्षा लगती है।
– किसी बंद पड़ी माइंस में छुप गया होगा।
– आस-पास के ग्रामीण क्षेत्र की पहाडियों पर शरण ली होगी।
– नजदीकी अपनी पुरानी टेरटरी में लौट गया।
तेंदुए के सबसे निकटतम सरदारसमंद क्षेत्र से आने की आशंका जताई गई है। नजदीकी सुरक्षित टेरटरी वहीं है। करीब 60 से 70 किमी की दूरी है, जिसे लेपर्ड एक रात में आसानी से कवर कर सकता है। जोधपुर के ग्रामीण क्षेत्र में पहले एक-दो मामले तेंदुए घुसने के जो सामने आए थे, इनमें भी वह सरदारसमंद से ही आया था।
पाली जिला मारवाड़ में तेंदुओं के लिए सबसे सेफ टेरटरी है। जवाई बांध के आस-पास की पहाड़ियों व गांवों में लेपर्ड इंसानों के साथ सामंजस्य बनाकर रहते हैं। वहां वाइल्ड लाइफ टूरिज्म का नया स्पॉट भी डवलप हुआ है। उस क्षेत्र की पहाड़ियां व वातावरण तेंदुओं के अनुकूल है। आंकड़ों की मानें तो इस रिजन में 40 से ज्यादा लेपर्ड है। इसके अलावा पाली जिले के सरदारसमंद, बाड़मेर व जैसलमेर जिले में भी तेंदुओं की टेरटरी वन विभाग ने रिकॉर्ड की थी।
– बीआर जाट, सीसीएफ वाइल्ड लाइफ, वन विभाग