सूर्यनगरी में स्वतंत्रता दिवस का वह सुनहरा दिन देश 75 वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है । जोधपुर में कुछ ऐसे लोग मौजूद हैं जिन्होंने 15 अगस्त 1947 की सुबह को प्रथम स्वतंत्रता दिवस के उगते सूर्य को निकलते देखा था । जनता ने बढ़चढ़ कर सार्वजनिक जश्न के जुलूसों में भाग लिया और आने वाले अनजाने गणतंत्र का अनेक आशंकाओं व आशाओं के साथ स्वागत किया था । जोधपुर में 15 अगस्त 1947 को सुबह सात बजे स्टेडियम ग्राउंड में मुख्य समारोह रखा गया था । जोधपुर के पूर्व महाराजा हनवन्त सिंह स्टेडियम सुबह 7.10 बजे पहुंचे और उनके मुख्य आतिथ्य में जोधपुर में पहली बार तिरंगा झंडा और मारवाड़ का पंचरंगा झंडा साथ – साथ फहराए गए । उसी समय मेहरानगढ़ की प्राचीर से अभिवादन एवं सलामी में इक्यावान तोपों की गर्जना गूंज उठी। मारवाड़ी घोड़ों की पीठ पर सवार सरदार इन्फेन्टरी बॉडीगार्ड रसाले ने सलामी दी । जश्न के निमंत्रण पत्र महकमा खास से – आलिया खास स्टेट के प्रधानमंत्री जनरल सर अजीतसिंह की ओर से भिजवाए गए थे। समारोह में जोधपुर के खास और आम जनता बड़ी संख्या में उपस्थित थी । मेहरानगढ़ के पट्टे पर रात को बिजली की रोशनी थी । इसके अलावा कचहरी भवन , घंटाघर , सोजती गेट व रेलवे स्टेशन पर भी रंग बिरंगी रोशनी से सजाया गया था। उस समय म्यूनिसिपल बोर्ड के अध्यक्ष द्वारकादास पुरोहित थे और नगर परिषद के भवन पर भी तेल के दीयों की दो दिन तक रोशनी की गई थी । जोधपुर में मर्चेन्ट एसोसिएशन की तरफ चांदीहाल , खेजडला हवेली में दफ्तरियों के मोहल्ले में भी कई सभाएं हुई और जश्न मनाए गए । इसके अलावा शाम को मजदूरों की ओर से रेलवे क्लब स्टेशन पर झंडारोहण का जश्न मनाया गया । दो दिन तक पूरे शहर में खूब गहमा – गहमी रही। -साभार एमएमटी
चारों तरफ था जश्न का माहौल प्रथम स्वाधीनता दिवस समारोह की कुछ धुंधली से यादें है। उस समय में मैं गुलाब सागर स्थित राजकीय प्राइमरी स्कूल में पांचवी कक्षा का विद्यार्थी था। विद्यालय में उस दिन किसी मिष्ठान विक्रेता की ओर से मोतीचूर के लड्डू विद्यार्थियों को बांटे गए थे। हम बच्चों ने उस दिन राष्ट्र गान व राष्ट्र गीत भी प्रस्तुत किया था। उस समय हमारे हैड मास्टर मोहम्मद कासिम थे । जालोरिया बास निवासी 90 वर्षीय श्रीकृष्ण टाक
गलियों के नुक्कड़ पर एकत्र होकर मना रहे थे खुशी . हम उस समय उम्मेद चौक में रहते थे। देश आजाद होने की खुशी में लोग गलियों के नुक्कड़ पर एकत्र होकर पर हंसते मुस्कराते चर्चा करते हुए देशभक्ति के नारे लगा रहे थे। खुशनुमा माहौल में कई जगह गुड़ तो कहीं लड्डू भी बांटे जा रहे थे। उस समय हम चार भाई बहनों सूरज कंवर, मोहन राखेचा और छोटी बहन कमला को गोद में लेकर आजादी के जश्न का नजारा देखने की छूट मिली थी। हमें भी उस दिन लड्डू खाने को मिले थे।
नागौरी गेट जालोरिया बास निवासी 95 वर्षीय बद्रीलाल राखेचा