12 महंतों की समाधियां इस मंदिर में 12 महंतों की समाधियां है। इनमें से 3 जीवित समाधि है। मंदिर परिसर में दुर्गापुरी, दौलतपुरी व चैनपुरी नागा साधुओं की जीवित समाधि हैं। वहीं अन्य नागा साधुओं की समाधियां भी है। गर्भ गृह के सामने चबूतरे पर यह समाधियां स्थित है।
गर्भ गृह में दो शिवलिंग व शिव परिवार मंदिर के नवनिर्माण में नेपाली बाबा का योगदान रहा। नेपाली बाबा की बनाई मंदिर निर्माण की डिजाइन व नव निर्माण योजना में मंदिर को एक नया रूप दिया। मंदिर के गर्भ गृह में माता पार्वती की श्वेत संगमरमर की आदमकद भव्य कलात्मक मूर्ति स्थापित है। साथ ही गणेश और कार्तिकेय की नवीन प्रतिमाएं स्थापित है। गर्भ ग्रह में दो शिवलिंग है एक अचलनाथ व दूसरा नर्बदेश्वर शिवलिंग है। मंदिर के वर्तमान व 16वें महंत संत मुनेश्वर गिरी है व व्यवस्थापक कैलाश नारायण है।
ऐसे पड़ा अचलेश्वर महादेव का नाम इस चमत्कारिक शिवलिंग की सूचना राव गांगा के पास पहुंची तो वह शिवलिंग का दर्शन करने आए। उन्होंने मन ही मन में संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मांगा। कुछ माह बाद उनकी मनोकामना पूरी हुई और भगवान शिव के आशीर्वाद से उन्हें अनेक पुत्र हुए। इस चमत्कार से राव गांगा की रानी ने इस स्थान पर मंदिर बनाने का निर्णय लिया। उस समय महंत परंपरा की चौथी पीढ़ी में महंत चैनपुरी थे। राव गांगा ने महंत चैनपुरी से इस शिवलिंग को नीचे के स्थान से हटाकर ऊंचे स्थान पर स्थापित करने का कहा। कोटड़ी में स्थित शिवलिंग को हटाने का प्रयास किया गया, किंतु हटना तो दूर शिवलिंग हिला तक नहीं। महंत चैनपुरी ने अपनी जटाओं से बांधकर शिवलिंग को हटाने का प्रयास किया, किंतु विफल रहे। उसी रात राव गांगा को स्वप्न में आदेश हुआ कि मुझे इस स्थान से मत हटाओ। मैं अचल हूं, स्वप्न के आदेशनुसार इसी स्थान पर मंदिर बनाया गया और इस शिवलिंग का नाम अचलनाथ, अचलेश्वर महादेव रखा गया।