फ्रांस के पुरपान स्कूल ऑफ एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग से आए छात्र लियो बिन्सन, कैमिल जूलौद, कैपुसिन आरेंट्स और अलिक्स लेमेर्ले के साथ एक प्रोफेसर टॉम रेव ने 1600 वर्ग मीटर के खेत में इस खेती को शुरू किया है। इस जमीन पर इनकी टीम ने खुद ही आकड़े के पौधे हटाकर सफाई की और उसे ही जमीन की नमी बढ़ाने में उपयोग कर रही है। इस रिसर्च वाली खेती के लिए कृषि विश्वविद्यालय ने भी आंकड़े उपलब्ध करवाए और शोध में सहयोग किया है। धरातल पर खेती शुरू करने से पहले इन्होंने काजरी, आफरी और कृषि विवि से कई प्रकार की सूचनाएं भी जुटाई है।
इस खेती और शोध के पीछे उद्देश्य
– आर्थिक स्थिरता के लिए पारम्परिक थार फसलों की ओर लौटना।
– जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम किया जा सकेगा।
– जैव विविधता को स्थानीय खेती से समझाने का प्रयास है।
– थार रेगिस्तान में ग्रामीण परिवारों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाना।
– यहां के पारंपरिक जल स्रोतों में सुधार होगा।
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तीन फसलों पर फोकस
केर, कुमठिया और खेजड़ी पर ज्यादा फोकस किया जा रहा है। फिलहाल तीन महीने तक यह टीम यहां रहकर इन पेड़-पौधों पर काम करेगी। यह मॉडल सफल होता है इसके बाद अन्य ग्राम पंचायतों को भी इससे जोड़ा जाएगा।
शहरी पलायन रोकने पर फोकस
संभली ट्रस्ट के सहयोग से यह प्रोजेक्ट धरातल पर लागू किया जा रहा है। संस्थापक गोविंद सिंह ने बताया कि इससे स्थानीय कृषि और पर्यावरणीय संरक्षण मजबूत होगा। साथ ही यह रेगिस्तानी फसलें आर्थिक रूप से मजबूती देगी और शहरी पलायन को कम करेगी।