उन्हीं पहाड़ों को अब खनन माफिया की नजर लग चुकी है और वे बेतहाशा खनन किए जा रहे हैं। इस प्रकार इस बांध के अलावा अन्य कई छोटे-बड़े बांधों और एनीकट के ऊपर भी संकट गहराएगा।
नागपहाड़, जिसे स्नेक माउंटेन भी कहा जाता है, यानी सर्पीली पहाडिय़ां। यह पहाडिय़ां इतनी लंबी-चौड़ी एवं ऊंची है कि जल से भरे बादलों को रोक अथाह पानी बरसाती है, और इसी नाग पहाड़ एवं अरावली से बहकर आने वाली जल राशि पुष्कर, नांद, गोविंदगढ़, रियां, आलनियावास, लांबिया, कालू, बलूंदा, निंबोल पहुंचता है। यही वह स्थान है जहां लीलड़ी नदी का पानी मिलता है, और बिराटियां एवं गिरी बांध को भरने वाली नदियों एवं बाळों का संगम होता है।
नोंचा जा रहा है पहाडिय़ों को नाग पहाड़ एवं अरावली पहाडिय़ों को खनन माफिया द्वारा नोचे जाने को लेकर अजमेर जिले के लोगों ने भी विरोध किया है। अब जसवंत सागर संघर्ष समिति की ओर से विरोध स्वरूप आवाजें उठने लगी है। नाग पहाड़ में हो रहे खनन के लिए जिम्मेदार अधिकारी एक दूसरे पर डालते रहते हैं, तो वन विभाग खनन वाले पहाड़ी क्षेत्र को राजस्व विभाग का हिस्सा बता पीछे हट रहे हैं, वहीं खनन विभाग भी आंखें मूंदे हुए हैं उधर पुलिस भी फौरी कार्रवाई कर इतिश्री कर देती है।
संघर्ष समिति करने लगी आंदोलन की तैयारी
समय रहते नाग पहाड़ एवं अरावली शृंखलाओं से हो रहे अवैध खनन को नहीं रोका गया तो जसवंत सागर बांध संघर्ष समिति एक बार फिर आंदोलन की राह पकडऩे की तैयारी में जुट गई है।
समिति अध्यक्ष कालूसिंह राठौड़ एवं उनके सहयोगी लालू महाराज हरियाड़ा, शंकरसिंह सोउ भावी, मिश्रीलाल विश्नोई बाला, मनोहर सिंह गुजरावास एवं उनके सहयोगियों ने बिलाड़ा में बैठक बुलाई है। कालू सिंह राठौड़ ने बताया कि पूर्व में भी जसवंत सागर बांध में अवैध रूप से खुदे नलकूपों को लेकर न्यायालय की शरण लेनी पड़ी और न्यायालय ने नलकूप बंद करवाए।
इनका कहना है
विश्व की प्राचीनतम पर्वत मालाओं में एक अरावली पारिस्थितिक तंत्र की दृष्टि से अत्यंत ही संवेदनशील पर्वतमाला है । मध्य अरावली में अजमेर शहर के चारों ओर फैले नागपहाड़ और तारागढ़ पर्वत शृंखला के साथ किसी प्रकार की छेड़छाड़ करने से यहां की पर्वतीय एवं धरातलीय जल प्रवाह को प्रभावित करेगा इससे बांध तक प्रभावित होंगे। पहाड़ों को काटने से शुष्क स्तर पर मरुस्थलीकरण बढ़ेगा। पर्वतीय क्षेत्र से मिट्टी का कटाव होगा तथा तापमान बढ़ेगा। सतही जल प्रवाह प्रभावित होगा।
– प्रो. नरपत सिंह राठौड़, भूगोलवेत्ता।