इस बांध की क्षमता ढाई हजार एमसीएफटी की है और यह बांध अब तक कई बार लबालब हो चुका है और दो बार पाळ टूट चुकी है। इसके कारण इसके निकट से गुजर रहा राष्ट्रीय राजमार्ग कई दिनों तक बाधित रहा तथा दर्जनों गांवों में पानी भरने के बाद सेना की सहायता ली गई थी।
उस समय पूरे क्षेत्र में पानी ही पानी हो गया था। कई गांवों में पानी पहुंच गया था। फिर भी अभी तक विभाग ने इस बांध की कोई सुध नहीं ली। टूटी पड़ी है नहरें
वर्ष 2007 में बांध की पाळ टूटने से हुए बाढ़ के हालातों के दौरान बाणगंगा नदी के तट टूट गए। काफी दूर तक नदी और चौड़ी हो गई। बाणगंगा नदी में वर्षों पूर्व बना चारणियां बैंक भी बह गया।
इससे इस नदी में पानी का ठहराव ही नहीं होता, इसके कारण इस नदी के दोनों और के सारे कुंओं का जल स्तर बहुत गहरा चला गया है। इन चौड़े हो चुके नदी के तटों की फिर से मरम्मत करने एवं टूट चुकी नहरों की विभाग ने अब तक न तो सुध ली हैऔर न ही इन्हें पुन: तैयार करने के लिए कभी तकमीना बनाकर सरकार के पास भेजा है।
बस औपचारिकता जसवंत सागर बांध की पाळ पर लगभग दो-ढाई सौ मिट्टी के कट्टे अलग-अलग स्थानों पर रखवाए गए हैं। गिनती के कुछ कट्टे डाक बंगले में रखे है। बाढ़ के हालात से निपटने के लिए यहां दो नावें, डेढ़-दो दर्जन सेफ्टि जाकेट, तैराकों की सूची, मजबूत रस्से एवं रस्सियां हवा भरे हुए ट्यूब, फुटब्रिज पर रोशनी के अलावा बांध की भराव क्षमता बढ़ाने के लिए शीशम के पाट आदि तैयार रखे जाने चाहिए।
लेकिन व्यवस्था के नाम पर यहां कुछ भी नहीं है। प्रतिवर्ष बांध की स्थिति एवं बांधों एवं एनिकटों के भराव की जानकारी लेने के लिए अस्थाई टेलीफोन कनेक्शन भी लिया जाता है लेकिन इस बार वह भी नहीं है।
टूटी पड़ी है नहरें वर्ष 2007 में बांध की पाळ टूटने से हुए बाढ़ के हालातों के दौरान बाणगंगा नदी के तट टूट गए। काफी दूर तक नदी और चौड़ी हो गई। बाणगंगा नदी में वर्षों पूर्व बना चारणियां बैंक भी बह गया। इससे इस नदी में पानी का ठहराव ही नहीं होता, इसके कारण इस नदी के दोनों और के सारे कुंओं का जल स्तर बहुत गहरा चला गया है।
इन चौड़े हो चुके नदी के तटों की फिर से मरम्मत करने एवं टूट चुकी नहरों की विभाग ने अब तक न तो सुध ली हैऔर न ही इन्हें पुन: तैयार करने के लिए कभी तकमीना बनाकर सरकार के पास भेजा है।
यूं बदलते है हालात जसवंत सागर बांध के अलावा यहां क्षेत्र में जालीवाड़ा एवं बिसलपुर बांध भी है, वहीं दर्जनों एनिकट भी बने हुए हैं, इनमें से कुछबांध और एनिकट पंचायत समिति के सुपुर्द किए हुए है, लेकिन बारिश के दौरान इनकी देख-रेख का जिम्मा सिंचाई विभाग पर ही रहता है।
वर्ष 2007 में बांध की पाळ के टूटने पर बांध के पानी के बहाव क्षेत्र में करीब 54 गांव आते हैं, जहां हेलीकॉप्टर से राशन सामग्री वितरित हुई थी। सेना के अधिकारी करते हैं निरीक्षण
प्रतिवर्ष मानसून के आने से पहले सेना के अधिकारी यहां आते है तथा उपखण्ड अधिकारी से वह सारी जानकारी लेते हैं, जो 1979 एवं 2007 में बांध के लबालब भरने एवं पाळ के क्षतिग्रस्त होने के बाद जिन हालातों से निपटा गया उसकी पूरी जानकारी लेते हैं एवं व्यवहारिक रूप से बांध, नहरें, पाळ एवं भराव क्षेत्र वाले गांवों तक पहुंचकर निरीक्षण करते है। जबकि विभाग इतना कुछ नहीं करता।
इनका कहना है विभाग के पास सीमित संसाधन है, स्टाफ की भी कमी है, बावजूद वे अपनी ओर से बाढ़ बचाव एवं उपकरणों की खरीद के लिए उच्चाधिकारियों को प्रस्ताव भेजते हैं, लेकिन वहां से भी बजट के अभाव का ही जवाब मिलता है।
– राजेन्द्र माथुर, सहायक अभियंता, सिंचाई विभाग, बिलाड़ा।