याचिका में आयोजना विभाग के 21 अगस्त के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें मुख्यमंत्री के स्वतंत्रता दिवस के समारोह पर दिए गए उद्बोधन की पालना में इंटरनेट कनेक्टिविटी वाले स्मार्टफोन के गारंटी कार्ड देने के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किए गए थे। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास बालिया व अधिवक्ता संजीत पुरोहित ने कहा कि स्मार्टफोन के गारंटी कार्ड देने की योजना कल्याणकारी गतिविधियों की श्रेणी में नहीं आती और यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के प्रावधानों पर भी खरी नहीं उतरती। स्वतंत्रता दिवस पर की गई सीएम की घोषणा की पालना में जिस तरह स्मार्टफोन गारंटी कार्ड की योजना का प्रचार-प्रसार किया है, वह स्पष्ट रूप से आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर पार्टी के अंतर्निहित राजनीतिक एजेंडे को दर्शाता है। खंडपीठ ने अतिरिक्त महाधिवक्ता संदीप शाह को जवाब दाखिल करने को कहा है।
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याचिका में योजना पर उठाए सवाल
– एक करोड़ महिलाओं को स्मार्टफोन देने की गारंटी देने का राज्य की अर्थव्यवस्था और राज्य सरकार के बजट पर भारी वित्तीय प्रभाव पड़ेगा। यहां तक कि इस प्रस्ताव का राज्य बजट और विनियोग अधिनियम में अनुमोदन तक नहीं किया गया।
– आयोजना विभाग का आदेश अधिकार क्षेत्र से परे है। साथ ही यह राजस्थान वित्तीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम, 2005 के प्रावधानों तथा वर्ष 2023- 24 के लिए राजस्थान सरकार की ओर से जारी मध्यम अवधि की
– प्रस्तावित गारंटी कार्ड राज्य की सार्वजनिक निधि पर प्रत्यक्ष देनदारी पैदा कर रहे हैं। चिरंजीवी कार्ड धारकों के परिवारों की पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना घोषणा की गई है। इससे राज्य के खजाने पर भारी राजकोषीय बोझ पड़ेगा।