राजस्थान हाईकोर्ट ने प्रतापनगर पुलिस को 25 अक्टूबर 2017 को लड़की के घर से भागकर छह माह पहले ही धर्म परिवर्तन करने व 14 अप्रेल 2017 को मुस्लिम लड़के से विवाह करने के प्रकरण की विश्वसनीयता की जांच करने और एफआईआर दर्ज करने का आदेश देते हुए मामले की रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए थे।
इससे पहले इस मामले में एएजी एसके व्यास के माध्यम से तलब करने पर खंडपीठ में पेश हुए प्रतापनगर पुलिस स्टेशन के सीआई अचल सिंह ने कहा कि कथित गुमशुदा लड़की ने 14 अप्रेल 2017 को धर्म परिवर्तन कर फैज मोदी नामक लड़के से शादी कर ली और पुलिस कमिश्नर के समक्ष पेश हो कर सुरक्षा देने का आवेदन किया है। इसलिए उसके भाई की एफआईआर दर्ज नहीं की जा रही है।
सुनवाई के दौरान सिंघवी ने बताया कि बुक एंड रजिस्ट्रेशन एक्ट 1867 सपठित संविधान के अनुच्छेद 77 के अंतर्गत बने बिजनेस रूल्स के तहत केंद्र सरकार ने विस्तृत दिशा-निर्देश, सर्कुलर व फॉरमेट जारी किया है, जिसके अंतर्गत नाम परिवर्तन, ***** परिवर्तन और धर्म परिवर्तन आदि के सम्बन्ध में क्या प्रक्रिया होगी? जहां तक धर्म परिवर्तन करने का सवाल है, तो केन्द्र सरकार ने एक फार्म बना रखा है। इसकी खानापूर्ति के बाद ही किसी को अपना वर्तमान धर्म त्यागना होता है। उसके बाद ही वह अन्य धर्म ग्रहण कर सकता है। इसीलिए महज शपथ पत्र देने से कोई धर्म परिवर्तन कर सके, ऐसा कानून ही गलत है।
सरकार ने कहा, बिल राष्ट्रपति को भेजा
सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता शिवकुमार व्यास ने कहा कि सरकार ने धर्म परिवर्तन को लेकर जो बिल बनाया था, वह दुबारा राष्ट्रपति के पास भेजा गया, जिसकी सुनवाई 27 नवम्बर तय हुई थी।
संविधान पीठ का हवाला याचिकाकर्ता के अधिवक्ताओं वरिष्ठ अधिवक्ता मगराज सिंघवी व नीलकमल बोहरा ने विरोध करते हुए कहा कि बिना किसी प्रक्रिया अथवा नियमों के कोई किसी का धर्म परिवर्तन नहीं कर सकता। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के रेव स्टेनिस्लास बनाम मध्यप्रदेश सरकार मामले में वर्ष 1977 में जारी निर्णय की नजीर पेश की कि राज्य धर्मांतरण के नियम या कानून बना सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि युवती के धर्मांतरण बाबत कोर्ट के समक्ष पेश किए गए सभी दस्तावेज संदिग्ध हैं और खुद में ही विरोधाभासी हैं। इससे निकाह सिद्ध नहीं हो रहा है। क्या एक शपथ पत्र के आधार पर धर्मांतरण हो सकता है?