जब औरंगजेब ने मेहरानगढ़ पर किया अधिकार जोधपुर महाराजा जसवंतसिंह (1638-1678) के स्वर्गवास के बाद औरंगजेब ने मेहरानगढ़ पर अधिकार कर लिया तब सभी मंदिरों को नष्ट करने का प्रयास किया गया। उस समय अमरसिंह राठौड़ के पुत्र इन्द्रसिंह मंदिर की मूर्तियों को बचाने के लिए सभी मूर्तियों को नागौर ले गए जिन्हें बाद में 1707-08 में महाराजा अजीतसिंह ने दुर्ग पर पुन: अधिकार के बाद नागौर से मंगवाकर पुन: प्रतिष्ठित किया था। इससे पहले विक्रम संवत् 1666 में सवाई राजा सूरसिंह ने नागणेच्यांजी के मंदिर का पुनः निर्माण करवाया ।
राठेश्वरी, पंखणी माता के नाम से भी संबोधित मूर्ति में सिंह पर सवार मां नागणेच्या के मस्तक पर नाग फन फैलाए हैं। नागणेच्या माता को मंशा देवी, राठेश्वरी, पंखणी माता के नाम से भी संबोधित किया गया है। मेहरानगढ़ के जनाना महल में प्रवेश करते समय दायीं तरफ माता नागणेच्याजी का मंदिर बना है। मंदिर परिसर के चार गर्भगृह में हिंगलाज, सिंगलाज माता, चतुर्भुज और शिव-पार्वती की चांदी की प्रतिमाएं हैं। वर्तमान में ये सभी मूर्तियां देखी जा सकती हैं । ये मूर्तियां उस समय की सुन्दर मूर्तिकला की प्रतीक हैं ।
राजकुमारियों के विवाह पर बनाई जाती है चंवरी ख्यातों से ज्ञात होता है कि यह मंदिर बाड़ी के महलों के पास जनानी ड्योढ़ी में बनाया गया था । वर्तमान में जनानी ड्योढ़ी की सिरे पोल ( मकराना पोल ) के अन्दर प्रवेश करके दाय ओर यह मंदिर बना है । मंदिर लम्बा एक साल के रूप बना है और चार कमरों में विभक्त है , चार दरवाजे बने हैं और ऊपर तीन शिखर बने हैं । आगे लम्बा बरामदा बना है । मुख्य गर्भगृह के आगे बड़ा चौक बना है । चौक के मध्य में एक सफेद संगमरमर की चौकी बनी है । इस चौकी के ऊपर गणगौर के उत्सव पर देवी गणगौर माताजी की मूर्ति की पूजा अर्चना की जाती है और राजपरिवार में राजकुमारियों के विवाह पर यहां चंवरी बनाई जाती है । हवन अनुष्ठान इत्यादि भी यहीं किये जाते हैं । मंदिर के चौक पूर्व दिशा में सुन्दर जालियों से सुसज्जित झरोखे बने हैं । लाल पत्थर पर नक्काशी किये ये जालीदार झरोखे बहुत सुन्दर हैं ।