दशहरे के दिन जलता है कुंभकर्ण
खास बात यह है कि पूरे भारत में दशहरे के दिन रावण वध होता है, लेकिन बिसाऊ में दशहरे के दिन कुंभकरण वध होगा और कुंभकरण का ही पुतला जलाया जाएगा। बिसाऊ की मूक रामलीला में चार पुतलों का दहन अलग-अलग दिन किया जाता है। इसमें कुंभकर्ण, मेघनाद, नरान्तक और रावण के पुतलों का दहन किया जाता है। यह भी पढ़ें – RPSC Exam : 12 लाख रुपए में अपनी जगह बैठाए 2 डमी अभ्यर्थी, परीक्षार्थी गिरफ्तार विदेशी पर्यटकों और प्रवासियों का आकर्षण
यह मूक रामलीला स्थानीय निवासियों ही नहीं, बल्कि विदेशियों और अप्रवासी भारतीयों के लिए भी आकर्षक का केंद्र बन चुकी है। हर साल विदेशी सैलानी और प्रवासी इस रामलीला का हिस्सा बनने के लिए यहां आते हैं।
इसलिए पड़ी परम्परा
साहित्यकार रामजीलाल कल्याणी ने बताया कि भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ था। इसलिए बिसाऊ की रामलीला में 14वें दिन रावण वध की लीला दिखाई जाती है। साथ ही रामलीला में सभी प्रसंग 10 दिन में दिखाया जाना संभव नहीं है, जबकि 15 दिन की रामलीला में सभी प्रसंगों को विस्तार से दिखाया जा सकता है।
आपस में नहीं करते संवाद
रामलीला का कोई पात्र संवाद नहीं बोलता। शाम को कलाकार चेहरे पर मुखौटे लगाकर खुले मैदान में ढोल की आवाज पर नृत्य की मुद्रा में लीला का मंचन करते हैं। इसके लिए मुख्य बाजार में बीच सड़क पर बालू मिट्टी बिछा कर दंगल तैयार किया जाता है। पात्रों की पोशाक भी स्वरूप के अनुकूल होती है। राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न व सीता का सलमें-सितारों से शृंगार किया जाता है।