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पेयजल संकट : कोरोना की दूसरी लहर के बीच बुंदेलखंड में प्यास से व्याकुल होने लगी आम जनता

तेज गर्मी के कारण हैंडपंप पर लगने लगी लम्बी कतारें, जंगल में पानी न होने पर प्यास से जानवरों की टूट रहीं सांसें, कम वर्षा के चलते मई माह में अधिकांश जलस्रोत सूखने की कगार पर, कुछ क्षत्रों में फसलों को समय से नहीं मिल पा रहा पानी

झांसीMay 26, 2021 / 06:37 pm

Neeraj Patel

Peyjal Sankat

General public started getting distraught with thirst in Bundelkhand

पत्रिका न्यूज नेटवर्क
झांसी. उत्तर प्रदेश के बुन्देलखंड में कोरोना की दूसरी लहर के बीच मई माह में तेज गर्मी के चलते आम जनता प्यास से व्याकुल होने लगी है। बुन्देलखंड में पिछले वर्ष कम बारिश होने का कारण मई माह में अधिकांश जलस्रोत सूखने की कगार पर आ गया हैं। जिससे आम जन को अपनी प्यास बुझाने के लिए समय पर पानी नहीं मिल पा रहा है। बुन्देलखंड के कुछ हिस्सों में तो कुए भी सूख गए हैं। जिनमें बिल्कुल भी पानी उपलब्ध नहीं है। जो हैंडपम्प पानी दे रहे हैं उन पर भी सुबह से ही लोगों की भीड़ जमा हो जाती है। वहीं कोरोना की दूसरी लहर के बीच प्रशासन की सख्ती के कारण लोग बाहर नकलने से कतरा रहे हैं। लेकिन प्यास के कारण लोग हैंडपम्प पर जाने को मजबूर हैं। इसके साथ ही कुछ जिलों में हैंडपम्प खराब भी पड़े हुए हैं। जिसके कारण आम जन को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

कोरोना महमारी की दूसरी लहर के बीच बुंदेलखंड में पेयजल संकट धीरे-धीरे विकराल रूप लेता जा रहा है, अब तो बात हैंडपंप पर कतार तक पहुंच गई है और कई किलोमीटर दूर से पानी लाने से आगे निकलकर मौत तक पर पहुंचने लगी है। पीने के पानी की चाहत में जहां इंसान की जान जा रही है, तो वहीं जंगल में पानी न होने के कारण प्यास से जानवरों की भी जान जा रही है। उत्तर प्रदेश के 7 और मध्य प्रदेश के 6 जिलों में फैले बुंदेलखंड के हर हिस्से का हाल एक जैसा है। कुछ हिस्सों के तालाब तो मैदान में बदल गए है, कुएं भी पूरी तरह सूख चुके है, हैंडपंपों में बहुत कम पानी बचा है। कई स्थानों पर टैंकरों से पानी भेजा जा रहा है, वह भी लोगों की पूर्ति नहीं कर पा रहा है। जिन जलस्रोतों में थोड़ा पानी बचा भी है, वहां सैकड़ों की भीड़ लगी लगी रहती है। जिसके कारण कुछ लोगों को तो बिना पानी लिए ही वापस घर को लौटना पड़ता है।

पानी के अभाव में मर रहे जंगली जानवर

पानी की चाहत में मारपीट, खून बहना तो आम बात हो चली है। एक तरफ आम इंसानों में पानी को हासिल करने की जद्दोजहद जारी है, तो दूसरी ओर जंगलों में जानवर प्यास से व्याकुल हो रहे हैं। जंगलों के जलस्रोत बुरी तरह सूख चुके हैं, लिहाजा पानी के अभाव में जानवरों की भी सांसें टूटने लगी है। बुंदेलखंड में बीते वर्ष हुई कम वर्षा के चलते मई का महीना पूरा गुजरते तक अधिकांश जलस्रोत सूखने के करीब हैं, कुछ तालाबों में तो न के बराबर पानी है, कुएं सूखे पड़े हैं, हैंडपंपों में बड़ी मशक्कत के बाद पानी निकल रहा है। आदमी तो किसी तरह पानी हासिल कर ले रहा है, मगर जंगली जानवर और मवेशियों को प्यास बुझाना आसान नहीं है। यही कारण है कि मवेशी और जंगली जानवर पानी के अभाव में मर रहे हैं।

सरकार के खिलाफ लोगों में बढ़ रहा असंतोष

बुंदेलखंड के किसी भी हिस्से में किसी भी वक्त जाने पर हर तरफ एक ही नजारा देखने को मिलता है और वह है, साइकिलों पर टंगे प्लास्टिक के डिब्बे, जलस्रोतों पर भीड़, सड़क पर दौड़ते पानी के टैंकर। आम आदमी की जिंदगी पूरी तरह पानी के इर्द-गिर्द सिमट कर रह गई है, मगर सरकार और प्रशासन यही दावे कर रहे हैं कि इस क्षेत्र के 70 प्रतिशत से ज्यादा हैंडपंप पानी दे रहे हैं। सच्चाई पर पर्दा डालने की इस कोशिश से लोगों में सरकार के खिलाफ असंतोष बढ़ रहा है।

कुछ क्षत्रों में फसलों को समय से नहीं मिल पा रहा पानी

बुन्देलखंड के कुछ जिलों में किसान मेंथा की खेती किए हुए हैं जिसके लिए ज्यादा पानी की जरूरत पड़ती है। माई माह में तेज गर्मी और मेंथा की फसल में पानी ज्यादा लगने कारण जमीन से पानी की खिचाव ज्यादा रहता है। इसलिए मई माह में वाटर लेवल कम से कम 15 से 20 फीट तक नीचे चला जाता है। जिसके कारण हैंडपम्प भी भारी चलने लगते है जिससे हैंडपम्प पर पानी भरने वाले लोग जल्दी थक हार जाते है और उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कुछ क्षेत्रों में जिन किसानों के पास ट्यूबवेल की व्यवस्था है उनको अपने खेतों में पानी देने में कोई समस्या नहीं होती है। जिन छोटे किसानों के पास फसलों में पानी देने की व्यवस्था नहीं है। उनकी फसलें समय पर पानी न मिलने कारण सूख जाती हैं। जिससे कई किसानों को लाखों रुपए का नुकसान हो जाता है।

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