झांसी। संस्कृत भारती, झांसी एवं विक्रम संस्कृत महाविद्यालय, झांसी के तत्वावधान में आयोजित छह दिवसीय आवासीय संस्कृत शिविर के समापन अवसर शिविर के प्रतिभागियों ने सदर बाजार चौराहे पर संस्कृत नाटक क्रोध पिशाच का मंचन किया। इस नाटक के माध्यम से दर्शकों यह समझाने का प्रयास किया गया कि क्रोध ही सभी पापों का मूल है। इसलिए क्रोध से बचना चाहिये। इस नाटक का निर्देशन संस्कृत भारती के प्रान्तीय संगठन मन्त्री प्रकाष झा ने किया।
संस्कृत से विश्व
गुरु बन सकता है भारत
इस अवसर पर अलीगढ़ के समाज कल्याण विभाग के निदेशक संदीप सिंह ने कहा कि हमारे देश में संस्कृत आज भी ज्ञान वाणी है। अगर इसे समाज की वाणी बना दिया जाए तो भारत को फिर से विश्व गुरु बनने से कोई रोक नहीं सकता है। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि यद्यपि संस्कृत के प्रति जनसामान्य में उदासीनता है परन्तु यह भी सत्य है कि संस्कृत को समझना, बोलना और पढ़ना बहुत ही आसान है। आज आवश्यकता इस बात की है कि समाज का हर वर्ग इसे अपनाए और इसका प्रयोग करे।
संस्कृत के प्रति जागरूकता है मुख्य उद्देश्य
कार्यक्रम में रुपरेखा प्रस्तुत करते हुए संस्कृत भारती झांसी के मंत्री डा.भागीरथ सिंह भदौरिया ने कहा कि इस कार्यक्रम का मूल उद्देश्य बच्चों को संस्कृत से जोड़ने के साथ ही साथ सभी को संस्कृत के बारे में जागृत करना है। इस कार्यक्रम में बनगवां संस्कृत विद्यालय, वीरांगना लक्ष्मीबाई स्मृति राजकीय महाविद्यालय, झांसी, विक्रम महाविद्यालय झांसी, आर्य कन्या महाविद्यालय झांसी तथा बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के बच्चों ने भाग लिया।
ज्ञान का आधार है संस्कृत
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संस्कृत भारती झांसी के अध्यक्ष रवीन्द्र जैन ने कहा कि संस्कृत केवल हमारे वेदों और धर्मग्रन्थों की भाषा नहीं है। यह हमारे वर्तमान ज्ञान का आधार है। इन्हें केवल एक दिन में ही नहीं लिखा गया है, ये अथक परिश्रम का प्रतिफल है। इस अवसर पर डा.बलभद्र त्रिपाठी, ओमशरण अग्रवाल, डा. हिना आसिफ, श्रुति एवं कई गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम का संचालन मधु श्रीवास्तव ने किया। बाद में विक्रम महाविद्यालय के प्रधानाध्यापक अजीत कुमार मिश्र ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।
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