होली पर बाहर निकलता है बाबैया ढोल मान्यताओं के अनुसार सैकड़ों साल पुराने इस ढोल को वर्षों पहले ठाकुरों ने मीर समाज को सौंपा था। यह ढोल को सिर्फ होली पर्व पर ही बाहर निकाला जाता है। बाकी के दिनों में यह ढोल को बाहर नहीं निकाला जाता है। रियासती के समय सेना के लिए लड़ाकों की आवश्यकता के मद्देनजर शुरू हुई बताई। इससे लटठ का प्रहार व बचाव में पारंगत लोगों को सेना के लिए चुना जाता था। धोकागैर 600 वर्ष पूर्व शुरुआत हुई बताते है, और शहर का हर वर्ग इसमें शामिल होता था। और ढोल भी 400 साल पुराना बताया।
कल से शुरू होगा गेर नृत्य होली पर्व पर वैसे तो भीनमाल की धोकागेर प्रसिद्ध है, आमली ग्यारस के साथ ही होली पर्व का शुभारंभ होता है। आमली ग्यारस से बड़े चौहटे पर गैर नृत्य का शुभारंभ होता है। बुधवार शाम को बड़ा चौहटा बाबैया ढोल के साथ यहां के बुर्जुग व युवा बड़ा चौहटे से बाबौया ढोल के साथ चण्डीनाथ तक पहुंचते है। महादेव व माताजी की पूजा-अर्चना कर उसके बाद बड़े चौहटे पहुंचते है। रात को 10 बजे से 11 बजे तक गेर का आयोजन होता है, जो धोकागेर के बाद समाप्त है। गेर नृत्य का आयोजन अनवरत सांस्कृतिक परम्परानुसार होता है और मैले-सा माहौल दिन भर पुरे शहर में रहता है। पूरा खेल इसी ढोल पर आधारित है
10-15 तक खेली जाती है धोकागेर
होली के अगले दिन शहर के बड़े चौहटे पर शाम को 5.30 धोकागेर खेली जाती है। धोकागेर चण्डीनाथ महादेव मंदिर से शाम 5 बजे बाबैया ढोल के साथ रवाना होकर खारीरोड, लक्ष्मीमाता मंदिर गणेश चौक होते हुए 5.30 बड़े चौहटे पर पहुंचती है। वहां पर 10-15 मिनट धोकागेर खेलने के बाद समापन होता है। यहां धुळण्डी पर्व होली दहन के दूसरे दिन खेली जाती है।
600 साल पुरानी की धोकागेर
भीनमाल की धोकागेर करीब 600 साल से ज्यादा पुरानी है। बाबैया ढोल भी 400 साल पुराना है। होली पर्व पर ही यह ढोल बाहर आता है। यहां गैर आमली ग्यारस से शुरू होता है, जो धोकागेर से समाप्त होता है। सालों से चली आ रही परम्परा है।
राव हकसिंह ईरानी, शहरवासी वर्तमान में कई बदलाव आए धोकागेर भीनमाल में सालों से खेली जाती है। बदलते परिवेश के साथ इसमें बदलाव भी आया है। पहले यह घंटेभर तक खेली जाती थी, लेकिन अब 10-15 मिनट तक ही खेली जाती है। गेर नृत्य का शुभारंभ बुधवार शाम से होगा।
बाबूलाल माली, शहरवासी