नई व्यवस्था की उलझनें कई
कुल मिलाकर तीन दशक बाद स्थानीय निकाय की कमान प्रशासन के हाथ में आई है और जनता के चुने हुए नुमाइंदों की इसके संचालन में किसी तरह का दखल नहीं होने के चलते आमजन के साथ पूर्व में निर्वाचित हो चुके पार्षद आदि भी समझ नहीं पा रहे हैं कि अब कामकाज किस तरह से होगा? यह असमंजता इतनी हावी है कि लोग पुराने कार्मिकों से इस बारे में सवाल जवाब करते हैं। हालांकि नगरपरिषद के अमले में भी ऐसे लोग शायद ही बचे हैं, जिन्होंने ज्ञापित क्षेत्र समिति के दौर में काम किया हो। यहां लोगों को एक भय यह भी सता रहा है कि जनप्रतिनिधियों के व्यवस्था से बाहर होने के कारण कहीं सरकारी तंत्र निरंकुश ढंग से काम न करने लगे?
अंदरखाने तैयारी शुरू लेकिन…
हाल में 45 सदस्यीय जिस बोर्ड का कार्यकाल संपन्न हुआ है, उसके निर्वाचित सदस्यों सहित पूर्व में चुनाव जीतने में विफल रहे लोग व नए आकांक्षी आगामी परिषद चुनाव की तैयारियों में जुटने लगे हैं। वे वार्डों में अपने लिए संभावनाएं टटोल रहे हैं। गौरतलब है कि आगामी चार महीनों में वार्डों के पुनर्सीमांकन और मतदाता सूचियों का काम चलेगा। उसके बाद सरकार आगामी निर्णय लेगी