हकीकत: इसलिए मायूस है व्यापारी
जैसलमेरी पत्थर की खानों का आवंटन पूर्व में पहले आओ पहले पाओ के आधार पर किया जाता था, जिसमें खनन पट्टा लेने का इच्छुक व्यक्ति पहले जगह का चिन्हीकरण करता था, बाद में खान विभाग से लीज प्राप्त किया करता था। करीब एक दशक पहले तत्कालीन सरकार ने प्रदेश के लिए एक समान मार्बल पॉलिसी के तहत जैसलमेरी पत्थर की माइन्स के लिए भी ई-ऑक्शन करवाने का निर्णय लिया। इस ऑक्शन में लागत ज्यादा आने से सफल बोलीदाता पीछे हटने लगे क्योंकि हजारों का खर्च लाखों में पहुंच जाता है। इसके अलावा औपचारिकताएं भी बहुत बढ़ गई हैं और वे बहुत खर्चीली भी पड़ती हैं। सरकारी प्रोत्साहन की कमी से हालात विकट होना शुरू हो गए। जैसलमेर के रीको औद्योगिक क्षेत्र में विगत कुछ वर्षों के दौरान पत्थर कटिंग की एक दर्जन इकाइयां बंद हो गई है। इससे उनमें नियोजित सैकड़ों श्रमिक बेकार हो गए। इसी तरह से जैसलमेरी मार्बल को रिक्टिफाइड टाइल्स और सिरेमिक्स से भी चुनौती मिल रही है।यहां मिलता है पत्थर
जैसलमेर जिले के मूलसागर, सिपला, सत्ता, काहला, चूंधी, जियाई, मूंदड़ी, अमरसागर में मार्बल तथा पिथला, बड़ाबाग, जेठवाई, चाहड़ू, पोहड़ा, हड्डा, बरमसर आदि में सेंड स्टोन और सांकड़ा, सनावड़ा, लखा, भाडली, मंगलसिंह की ढाणी आदि में ग्रेनाइट पत्थर निकलता है।भविष्य उज्ज्वल है
जैसलमेरी पत्थर व्यवसाय के लिए वर्तमान समय अच्छा है और भविष्य भी उज्ज्वल है। हालांकि मार्बल पॉलिसी तो पूरे प्रदेश एक ही हो सकती है। पत्थर पर रॉयल्टी भी उतनी ही लगेगी। आने वाले समय में जिले में पत्थर के खनन पट्टों के लिए नए क्षेत्रों का चिन्हीकरण किया जाएगा।- घनश्याम चौहान, खनि अभियंता, जैसलमेर