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ईको सिस्टम के लिए बाघ क्यों जरूरी हैं?
बाघों को बसाने या बचाने के लिए हमें जंगल की जरूरत होती है और जंगल ही हमारी जरूरतों को पूरा
करने का प्रमुख जरिया है। फेस्ट ऑक्सीजन, पानी, वन संपदा के साथ ही पारिस्थितिक तंत्र को बचाए रखने में इनकी भूमिका होती है। टाइगर रिजर्व के बहाने ही सही हमने देश में 76 हजार वर्ग किमी क्षेत्र को संरक्षित कर रखा है, अन्यथा ये भी इंसानों की जरूरतों का हिस्सा बन जाता। इसके अलावा जंगलों से सभ्यताओं का सांस्कृतिक जुड़ाव रहा है। हमारी संस्कृति में भी पेड़, जंगल और वन्यजीवों को किसी न किसी रूप में पूजा जाता है। यही आस्था हमें प्रकृति के प्रति दया भाव और संरक्षण की सीख देती है।
पर्यटन में टाइगर रिजर्व की भूमिका कितनी है ?
पर्यटन भी है, लेकिन इसे सबसे आखिर में मानना चाहिए ये 53 में से सिर्फ 7-8 टाइगर रिजर्व में ही पर्यटन । इनमें रणथंभौर सबसे आगे हैं। फिर इन पर जितना खर्च होता है. उसके अनुपात में फायदा नहीं है। सबसे बड़ा फायदा तो पर्यावरण और ईको सिस्टम के लिए ही है।
बाघ इंसानों के बीच संघर्ष को कैसे रोका जा सकता है?
ये संघर्ष तब बढ़ता है, जब इंसानों बाघों के घर में अतिक्रमण करता है। यानी बाघों के लिए संरक्षित क्षेत्र से इंसानों का दबाव कम करना होगा। मोटे तौर पर देश के सभी रिजर्व में अब भी ढाई से तीन लाख लोग रहते हैं। अकेले रणथंभौर में ही 20 हजार से ज्यादा लोग निवास करते हैं। इसके लिए विस्थापन किया जा सकता है।
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तकनीक से बाघ संरक्षण में कैसे मदद मिली है?
पिछले दो दशकों में बाघों के संरक्षण में उल्लेखनीय कार्य हुए हैं, इनमें तकनीक से काफी मदद मिली है। अब कैमरा ट्रैपिंग, रेडियो कॉलर, टेली कम्युनिकेशन से बाघों की मॉनिटरिंग में काफी मदद मिली हैं।
देश में अभी बाघ संरक्षण की स्थिति कैसी?
पिछले दो दशकों में बाघों के संरक्षण को लेकर अच्छा काम हुआ है। देश में बाघों के लिए करीब 76 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र संरक्षित है, जिसमें 40 फीसदी पिछले 15-17 वर्षों में बढ़ा है। – धर्मेंद्र खांडल, कंजर्वेशन बायोलॉजिस्ट, रणथंभौर टाइगर रिजर्व (राजस्थान) (टाइगर वॉच संस्था भी चलाते हैं)