2035 तक 50 लाख बच्चों को पर्यावरण से जोडऩे का लक्ष्य
पद्म श्री विजेता हिम्मता राम भाम्भू ने बताया, ‘मैं बीते 48 साल में पर्यावरण संरक्षण के लिए साढ़े पांच लाख से ज्यादा पौधे लगा चुका हूं, जिनसे सालाना 12 अरब रुपए की प्राणवायु ऑक्सीजन प्राप्त होती है। युवा पीढ़ी को प्रकृति से जोड़े बिना पर्यावरण संरक्षण का महती अभियान पूरा नहीं हो सकता। इसके लिए मैं 2035 तक 50 लाख बच्चों को पर्यावरण संरक्षण से जोडऩे के लिए अलग-अलग राज्यों में जाकर जनसंपर्क कर रहा हूं। अब तक हिमाचल प्रदेश, यूपी, हरियाणा, गुजरात, पंजाब और महाराष्ट्र समेत कई राज्यों के 72 हजार बच्चों से मिलकर उन्हें ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने के लिए प्रेरित कर रहा हूं। एक आदमी को जीवन पर्यन्त साढ़े नौ करोड़ रुपए की ऑक्सीजन की जरूरत होती है। विश्व पर्यावरण दिवस पर दिल्ली में प्रधानमंत्री से भी मिलेंगे। वहां हम यह मांग रखेंगे कि पेड़ काटने पर सजा का प्रावधान और आर्थिक दंड सख्त हो, ताकि पेड़ों की अवैध कटाई को रोका जा सके।’ भाम्भू पर भारत सरकार का सूचना एवं जनसंपर्क मंत्रालय 35 मिनट की एक डॉक्यूमेंट्री हिंदी और अंगे्रजी में बना रही है।
राजस्थान की 15 प्रमुख फसलों की 700 किस्मों को सहेजा
कृषि के क्षेत्र में नवाचार करने, ड्राई फॉर्मिंग तकनीक, एक लीटर क्रॉप तकनीक, क्रॉप रोटेशन और लाल मिर्च की नई किस्म तैयार करने वाले पद्म श्री सुंडाराम वर्मा ने कहा, ‘हरित क्रांति से प्रेरित होकर मैंने अपने खेतों में कृषि तकनीक और खेतीबाड़ी संबंधी नवाचार करने शुरू किए। क्रॉप रोटेशन तकनीक से आज अपने खेतों में तीन वर्ष की अवधि में 15 किस्मों की फसलें उगाता हूं। सालाना खरीफ और रबी की 400 किस्में लगाता हूं। राजस्थान की 15 प्रमुख फसलों की 700 से ज्यादा देशी किस्मों को सहेजने का काम किया है। श्रीराम स्कूल दिल्ली के एक छात्र अधिदेव ने मेरे यूट्यूब पर वीडियो देखे और वन लीटर टेक्नीक की मदद से 2000 पौधे लगाए। बच्चे के इस प्रयास को यूएनओ के सेक्रेट्री ने भी टवीट किया। इतना ही नहीं, उस बच्चे को १ लीटर पानी से पेड़ लगाने के लिए भारत, सिंगापुर, हॉलैंड समेत पांच देशों से इंटरनेशनल अवॉर्ड मिले। कहने का मतलब है कि युवा अगर हमारे साथ इस मुहिम में जुट जाएंगे, तो वैश्विक स्तर पर पर्यावरण से जुड़ी चुनौतियों को खत्म किया जा सकता है।’
युवाओं को सामाजिक सरोकार से जोड़ 100 गांवों में किया जल संरक्षण
इस साल पद्म श्री से सम्मानित हुए लक्ष्मण सिंह लापोडिय़ा ने कहा, ’40 साल से हम दुदु के आस-पास के 100 से ज्यादा गांव में पौधरोपड़ और तालाब जीर्णोंद्धार के साथ पर्यावरण संरक्षण का मेरा सफर शुरू हुआ। अपने गांव लापोडिय़ा में हमने गांव वालों की मदद से कुंओं, तालाबों, बावडिय़ों और नहरों का जीर्णोद्धार किया। उस समय 70-80 फीट गहराई में पेंदे में पानी हुआ करता था। पीने का पानी भी कुंए के अंदर उतरकर लाते थे। गांव के लोगों को साथ जोड़कर चार किमी लबी नहर बनाई बिना किसी फंड के, जिससे आज भी पानी आता है। बिना सरकारी मदद के गांव के युवाओं और बुजुर्गों की मदद से कुदाल-फावड़ों से तीन धाम नाड़ी, अमरती नाडिय़ां, देवसागर, फूलसागर तालाब गनाए और इनके इस्तेमाल संबंधी नियम बनाए। पुराने सागर से सिंचाई, फूलसागर, देवसागर में वॉटर हार्वेस्टिंग की जाएगी और हर घर से पेड़ लगाए जाएंगे। 103 कुओं में मई-जून के महीने में भी 10 से 15 फीट पर पानी है, बरसात के दिनों में मुंडेर तक पानी भर जाता है। सभी कुंए रीचार्ज हैं। धरती जतन यात्रा के जरिए हमने आस-पास के सभी गांवों में इस तरह के संगठन तैयार किए और इस मुहिम को गांव-गांव तक पहुंचाया। जानवरों की नस्लें सुधारी। मेरा मानना है कि युपाओं के साथ आने से नवाचार और जोश दोनों का साथ मिलेगा। बुजुर्गों का अनुभव और युवाओं की ऊर्जा पर्यावरण से जुड़ी चुनौतियों का बेहतर समाधान निकाल सकते हैं।’