प्रदेश का एकमात्र आइलैंड
यह प्रदेश का एकमात्र आइलैंड भी है, जो अन्य जिलों से एक अलग पहचान रखता है। लोग इन द्वीपों को देखने के लिए तो आते ही हैं, साथ ही धार्मिक रूप से लोगों में अलग पहचान रखने वाले बेणेश्वर धाम भी आते हैं। यह डूंगरपुर-बांसवाड़ा बॉर्डर पर स्थित है। बेणेश्वर धाम राजस्थान का एक ऐसा स्थान है जो लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है। यह आदिवासियों का वह धार्मिक स्थल है जहां तीन नदियों का संगम भी होता है, जिसमें लाखों लोग डुबकी लगाते हैं, इसलिए इसे राजस्थान का ‘प्रयागराज’ भी कहते हैं। सोम, माही व जाखम नदियों के संगम पर बने बेणेश्वर धाम में हर साल माघ शुक्ल पूर्णिमा के अवसर पर मेला लगता है, जिसे आदिवासियों का महाकुंभ भी कहते हैं। यहां स्थित भगवान शिव मंदिर के निकट भगवान विष्णु का भी मंदिर है।
यह है बेणेश्वर धाम की खासियत
बेणेश्वर धाम के बारे में मान्यता है कि जब भगवान विष्णु के अवतार माव जी ने यहां तपस्या की थी तो ये मंदिर उसी समय बना था। धार्मिक पर्यटन में रुचि लेने वालों के लिए यह स्थान बेहतरीन जगहों में से एक है। बेणेश्वर मंदिर के परिसर में लगने वाला यह मेला भगवान शिव को समर्पित है। यह एक ऐसा स्थान है जो आदिवासी संस्कृति से जुड़े इतिहास की वजह से दुनियाभर में एक अलग पहचान रखता है। संत मावजी की याद में हर वर्ष माघ शुक्ल पूर्णिमा को यहां सबसे विशाल आदिवासियों का मेला लगता है, जिसमें राजस्थान ही नहीं बल्कि गुजरात और मध्य प्रदेश से भी बड़ी संख्या में आदिवासी आते हैं। यही वजह है कि इसे आदिवासियों का कुम्भ और भीलों का प्रसिद्ध मेला भी कहा जाता है।
बेणेश्वर धाम में देखने को मिलता है विविध संस्कृतियों का नजारा
बांसवाड़ा जिले में माही, सोम व जाखम नदियों के पावन जल से घिरा बेणेश्वर धाम प्राकृतिक सौंदर्य का केंद्र तो है ही, साथ ही विविध संस्कृतियों का नजारा भी यहां देखने को मिलता है। मेले में देश के कई हिस्सों, विशेष रूप से मध्य प्रदेश और गुजरात से बड़ी संख्या में लोग यहां आते हैं। मेले के दौरान पवित्र जल संगम में अस्थी विसर्जन, देव दर्शन, साथ ही मनोरंजन की सारी सुविधाएं उपलब्ध होती हैं। मान्यताओं के अनुसार, यहां जो मेला लगता है वो करीब 300 वर्ष से लगता आ रहा है। माना जाता है कि 300 वर्ष पहले संत मावजी जो महाराज वागड़ के महान संत भी थे, उन्होंने बेणेश्वर धाम में तपस्या की थी। इसके चलते जनजाति समाज में सामाजिक समझ जागृत हुई। यहां बेणेश्वर की गाथाएं काफी ज्यादा लोकप्रिय हैं। संगम में डूबकी लगाने के बाद भगवान शिव के दर्शन के लिए बेणेश्वर धाम जाने को हर कोई बेताब रहता है।