मार्तण्ड सप्तमी कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री अदिति और महर्षि कश्यप के कई पुत्र थे जोकि देव कहलाये। अदिति की बहन दिति के पुत्र असुर कहलाये। असुर देवताओं के प्रति वैर भाव रखते थे और देवताओं को मार कर स्वर्ग पर अधिकार प्राप्त करना चाहते थे। अपने पुत्रों की रक्षा के लिए देवी अदिति ने सूर्य देव की उपासना का प्रण किया और कठोर तपस्या करने लगीं। इससे प्रसन्न होकर सूर्य देव ने उन्हें दर्शन देकर वरदान मांगने को कहा।
तब देव माता अदिति ने कहा कि आप मेरे पुत्र के रूप में जन्म लेकर अपने भाइयों यानि देवताओं के प्राणों की रक्षा करें। सूर्य देव ने उन्हें यह वरदान दे दिया जिसके परिणामस्वरूप अदिति के गर्भ में भगवान सूर्य का अंश पलने लगा। गर्भकाल में भी देवी अदिति कठोर तप करती रहीं जिससे वे कमज़ोर होती जा रहीं थीं। समझाने पर भी जब अदिति ने तप और व्रत जारी रखा तो महर्षि कश्यप ने क्रोध में आकर कह दिया कि इस गर्भ को मार डालो। इस पर अदिति ने गर्भ गिरा दिया।
तभी आकाशवाणी हुई कि ऋषिवर, यह सामान्य अण्ड नहीं बल्कि सूर्यदेव का अंश है। यह जानकर पश्चाताप जताते हुए ऋषि ने सूर्य देव की वंदना करते हुए अपने अपराध के लिए क्षमा मांगी। सूर्यदेव ने महर्षि को क्षमा कर दिया। उस अण्ड से अत्यंत तेजस्वी पुरूष का जन्म हुआ जो मार्तण्ड कहलाया। सूर्य देव के इसी स्वरूप की मार्तंड के नाम से उपासना की जाती है। जिस दिन अंड से मार्तण्ड भगवान की उत्पत्ति हुई उस तिथि को मार्तंड सप्तमी कहा जाने लगा। सूर्यदेव अदिति के गर्भ से जन्मेे थे इसलिए वे आदित्य भी कहलाते हैं।