सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ, जिसमें माननीय न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन शामिल थे, ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि इतने बड़े जुर्माने से राज्य के प्रयासों को बाधा पहुंच सकती है।
सरकार ने दी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
राजस्थान सरकार की तरफ से पैरवी करते हुए अतिरिक्त महाधिवक्ता शिव मंगल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि एनजीटी का जुर्माना मनमाना और राज्य के प्रयासों की अनदेखी करने वाला है। उन्होंने बताया कि राज्य ने 2018 से अब तक तरल कचरा प्रबंधन पर 4712.98 करोड़ रुपये और ठोस कचरा प्रबंधन पर 2872.07 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। राज्य सरकार ने यह भी कहा कि उसने 129 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STPs) चालू किए हैं, जिनकी कुल क्षमता 1429.38 एमएलडी है। इसके साथ ही पुराने कचरे का 66.55% उपचार भी किया गया है। बावजूद इसके, एनजीटी ने 113.10 करोड़ रुपये का जुर्माना एक महीने के भीतर जमा करने और मुख्य सचिव एवं अन्य अधिकारियों के खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी किया था।
सुप्रीम कोर्ट का संतुलित नजरिया
सुप्रीम कोर्ट ने जुर्माने के आदेश पर रोक लगाते हुए कहा कि राज्य सरकार के प्रयास सराहनीय हैं और इस जुर्माने से उनके पर्यावरणीय सुधार कार्यों में बाधा आ सकती है। यह फैसला एक समान मामले में पंजाब राज्य के जुर्माने पर रोक लगाने की मिसाल के अनुरूप है। खंडपीठ ने कहा कि पर्यावरणीय नियमों का अनुपालन आवश्यक है, लेकिन इसके लिए राज्य को दंडित करने के बजाय प्रोत्साहित करना चाहिए।
राजस्थान सरकार को मिली राहत
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से राजस्थान सरकार को न केवल वित्तीय दबाव से राहत मिली है, बल्कि पर्यावरणीय सुधार कार्यों को जारी रखने का प्रोत्साहन भी मिला है। राजस्थान सरकार ने इस स्थगन आदेश का स्वागत किया है और इसे न्यायपालिका का संतुलित और सकारात्मक निर्णय बताया है। राज्य सरकार ने कहा कि वह पर्यावरणीय सुधार के लिए अपने प्रयासों को और मजबूत करेगी।