अर्सलान कहते हैं कि अब मत्स्य पालन विभाग से संपर्क करके इसे बढ़ावा देने की कोशिश की जाएगी। अर्सलान का कहना है कि वे महराष्ट्र में पिछले तीन सालों से झींगा पालन कर रहे हैं। राजस्थान में भी उनके शुरूआती प्रयास सफल रहे हैं। उन्होंने बताया कि मछली उत्पादन में झींगा की तुलना में दोगुना समय लगता है। जबकि झींगा मछली की तुलना में बिकता भी अच्छी कीमत पर है। बाजार में इसकी मांग बनी रहती है।
आपको बता दें कि झींगा एक जलीय जन्तु होता है। इसका शरीर सिफैलोथोरैक्स एवं उदर में विभक्त होता है। इसमें पाँच जोड़े पैर एवं पाँच जोड़ं शाखांग होते हैं। इसे बंगाली भाषा में चिंगडी माछ कहते है एवं उडिया भाषा में चिंगुडी माछो कहते है। भारत में पिछले कई सालों में मत्स्यपालन एक पिछड़ी गतिविधि से आगे बढ़कर प्रौद्योगिकी आधारित वाणिज्यिक और मुनाफा कमाने वाले उद्यम के रूप में खड़ा होने में सफल हुआ है। भारत अब चीन के बाद मत्स्यपालन में दूसरे नंबर पर है। झींगा का उत्पादन भी लगातार बढ़ रहा है।
साउथ में श्रिंम्प का अच्छा उत्पादन
आपको बता दें कि भारत में पश्चिम बंगाल, ओडिशा, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, पॉन्डिचेरी, केरल, कर्नाटक, गोआ, महाराष्ट्र और गुजरात में करीब 1.2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर ही झींगा की खेती की जा रही है। इस क्षेत्र में उद्यमियों के लिए बड़ी संभावनाएं हैं। सैय्यद अर्सलान का कहना है कि कोई भी किसान 10 लाख रुपए की लागत से झींगा की खेती अच्छी तरह से शुरू कर सकता है। खारे के साथ ही मीठे पानी में भी ब्रीडिंग के जरिए झींगा उत्पादन किया जा सकता है। झींगा मछलियों के साथ पानी की गंदकी और वेस्ट खाकर पानी को साफ करने में भी मदद करता है।