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दरअसल अस्पताल की इमरजेंसी में बीमार, हार्ट अटैक या अन्य गंभीर बीमारी से ग्रस्त मरीज गंभीर हालत में पहुंचते हैं, जबकि ट्रोमा सेंटर में दुर्घटना, मारपीट या विवाद में घायल-चोटिल लोगों को इलाज के लिए लाया जाता है। अस्पताल में जयपुर के अलावा प्रदेश के विभिन्न जिलों व समीप के राज्य उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, मध्यप्रदेश से भी रैफर होकर इलाज के लिए मरीज भर्ती करवाए जाते हैं। यहां आने वाले कुल मरीजों में रोजाना औसतन 8-10 की मौत हो जाती है। कई बार घायल अवस्था या बीमारी की वजह से रास्ते में ही मौत हो जाती है। अस्पताल पहुंचने पर उन्हें मृत घोषित कर देते हैं। इनमें से कइयों के शवों के पोस्टमार्टम की जरूरत पड़ती है तो कईयों के शव बिना पोस्टमार्टम के ही परिजन को सौंप दिए जाते हैं।
कई दिनों से कफन का टोटा: पत्रिका पड़ताल में सामने आया कि शव को ढकने के लिए कफन (सफेद कपड़े) का का कई दिनों से टोटा है। इस स्थिति में परिजन को दुख-दर्द के बीच कफन के लिए दौड़ाया जा रहा है। वे अस्पताल के बाहर से औने-पौने दाम में कपड़ा खरीदकर लाते हैं।
मोर्चरी में सफेद चादर ओढ़ाकर शव भेजने को मजबूर: सबसे ज्यादा परेशानी लावारिस या अज्ञात का शव ट्रोमा सेंटर की इमरजेंसी से मोर्चरी में रखवाने में हो रही है। कफन नहीं होने पर सफेद चादर ओढ़ाकर शव को भेजा जा रहा है। कई दिनों से ऐसा ही हो रही है।
केस 1
गुरुवार शाम को भाई का भांकरोटा के पास एक्सीडेंट हो गया था। ट्रोमा सेंटर में ही उसकी मौत हो गई। इमरजेंसी में तैनात स्टाफ ने कहा कि कफन का कपड़ा खत्म हो गया। बाहर से खरीद लाओ। जिससे 120 रूपए में कपड़ा खरीदकर लाना पड़ा।-जितेंद्र गहलोत (मृतक का भाई), बगरू
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केस 2
छोटे भाई की पत्नी को हार्ट अटैक आ गया था। रास्ते में उसकी मौत हो गई। चिकित्सकों उसे अस्पताल की इमरजेंसी में लाने के बाद मृत घोषित कर दिया। शव घर ले जाने के लिए बाहर एक दुकान से कपड़ा खरीदकर लाना पड़ा।- मदन लाल (मृतक के परिजन), हीरापुरा
वर्जन: कुछ दिनों से कफन की दिक्कत चल रही है। स्टोर में डिमांड भेजी गई है। जल्दी समाधान हो जाएगा।-डॉ. बी.पी. मीणा, इंचार्ज, इमरजेंसी एसएमएस अस्पताल