रात को इन अस्पतालों में पहुंचने वाले मरीजों को भर्ती के नाम पर टरकाया जा रहा है। उन्हें भर्ती करने की बजाय प्राथमिक उपचार के बाद घर जाने को कह दिया जाता है। साथ ही अगले दिन ओपीडी में डॉक्टर से परामर्श की सलाह दे पल्ला झाड़ लिया जाता है। ऐसे में उन मरीज व परिजन को ज्यादा पीड़ा होती है, जो दूरदराज से रैफर होकर पहुंचते हैं। मजबूर होकर परिजन मरीज को निजी अस्पताल में भर्ती करवा देते हैं। इस तरह के केस जयपुरिया, एसएमएस व जेके लोन अस्पताल में सामने आ रहे हैंं।
शिकायतों के बाद भी जिम्मेदार अनजान
पीड़ितों के मुताबिक इस लापरवाही की शिकायत अस्पताल प्रशासन के अलावा मुख्यमंत्री, चिकित्सा मंत्री को भी भेज चुके हैं, इसके बावजूद हालात जस के तस हैं। कोई सुनवाई नहीं होती। इस स्थिति में परिजन कई बार मरीजों को भर्ती करवाने के लिए पहले तो चिकित्सक या फिर स्टाफ से मिन्नतें करते हैं, फिर इधर-उधर संपर्क करते हैं। स्थानीय विधायक, मंत्री व अन्य जनप्रतिनिधियों से भी देर रात भर्ती करवाने की गुहार लगाते हैं।
बेवजह भर्ती करना ठीक नहीं
अस्पताल प्रशासन का कहना है कि इमरजेंसी में आने वाले प्रत्येक मरीज को भर्ती करना संभव नहीं है। मरीज की स्थिति देखकर भर्ती का निर्णय लिया जाता है। कुछ मरीजों को विशेषज्ञ चिकित्सकों से परामर्श के लिए ओपीडी में आने को कहा जाता है।
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रात 11 बजे करौली से रैफर होकर आए थे
मां को न्यूरोलॉजिकल दिक्कत है। करौली से रैफर होने के बाद उसे रात 11 बजे एसएमएस अस्पताल की इमरजेंसी में लाए थे। यहां डॉक्टर ने दवा लिख दी और कहा कि सुबह ओपीडी में दिखा लेना। उसके बाद एक घंटे तक इमरजेंसी के बाहर फर्श पर बैठे रहे। काफी आग्रह के बाद भर्ती किया।
– किशोर शर्मा, मरीज का बेटा
भर्ती कर लेते तो बच जाती जान
हादसे में भाई गंभीर घायल हो गया था। उसे जयपुरिया अस्पताल लेकर गए। भर्ती करने की बजाय प्राथमिक उपचार कर घर जाने को कह दिया गया, जबकि एक घंटे बाद ही उसकी मौत हो गई। भर्ती कर उपचार शुरू कर देते तो शायद उसकी जान बच जाती।
-महेश शर्मा, मानसरोवर