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Gita Jayanti भगवान की पूजा से भी बढ़कर है कर्तव्य का पालन करना, जानें श्रीकृष्‍ण ने गीता में कैसे बताया कर्म का महत्व

मार्गशीर्ष यानि अगहन माह की शुक्ल पक्ष एकादशी पर गीता जयंती मनाई जाती है। माना जाता है कि श्रीकृष्‍ण ने इसी दिन गीता के उपदेश दिए थे। महाभारत के संघर्ष में अर्जुन ने जब अपनों के खिलाफ शस्‍त्र उठाने से मना कर दिया तब श्रीकृष्‍ण ने उन्‍हें कर्तव्य पालन कर कर्म के लिए प्रेरित किया। श्रीकृष्‍ण के इसी ज्ञान को श्रीमद्भगवद्गीता में संकलित किया गया है। गीता में कर्मयोग को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। श्रीकृष्‍ण ने अर्जुन से कहा कि कर्म के लिए कर्म करो, आसक्तिरहित होकर कर्म करो।

जयपुरDec 25, 2020 / 10:00 am

deepak deewan

Shrimadbhagwad Gita Importance Of Gita Jayanti 2020 Mokshda Ekadashi

Shrimadbhagwad Gita Importance Of Gita Jayanti 2020 Mokshda Ekadashi

जयपुर. मार्गशीर्ष यानि अगहन माह की शुक्ल पक्ष एकादशी पर गीता जयंती मनाई जाती है। माना जाता है कि श्रीकृष्‍ण ने इसी दिन गीता के उपदेश दिए थे। महाभारत के संघर्ष में अर्जुन ने जब अपनों के खिलाफ शस्‍त्र उठाने से मना कर दिया तब श्रीकृष्‍ण ने उन्‍हें कर्तव्य पालन कर कर्म के लिए प्रेरित किया। श्रीकृष्‍ण के इसी ज्ञान को श्रीमद्भगवद्गीता में संकलित किया गया है। गीता में कर्मयोग को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। श्रीकृष्‍ण ने अर्जुन से कहा कि कर्म के लिए कर्म करो, आसक्तिरहित होकर कर्म करो।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥ श्रीमदभगवद्गीता- 2-47
भावार्थ – तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए तू कर्मों के फल हेतु मत हो तथा तेरी कर्म न करने में भी आसक्ति न हो॥ इस प्रकार गीता रूपी ज्ञान में उन्‍होंने अर्जुन को बताया कि जो भी घटित हो रहा है वह नियंता के द्वारा ही हो रहा है।
गीता का स्पष्ट संदेश हैः कर्म करें- फल की चिंता न करें।कर्मयोग का यह सिद्धान्त कहता है कि निष्काम कर्म करना चाहिए और कर्म से फल की अपेक्षा नहीं होना चाहिए। फल अच्छा हो या बुरा तब भी पूरी लगन से कर्म करते रहना है, चूंकि ईश्वर सर्व कर्म के कर्ता हैं और हम मात्र एक कठपुतली हैं अतः हमारे कर्म का फल ईश्वरेच्छा अनुसार होगा और वह हमें पूर्ण रूपेण स्वीकार करना होगा।
श्रीमद्भगवत गीता सनातन धर्म का प्रमुख ग्रंथ होने के साथ ही दर्शन शास्‍त्र का भी बेहतरीन उदाहरण है। इसमें कुल 18 अध्‍याय हैं। श्रीकृष्‍ण और अर्जुन की बातचीत पर आधारित महाग्रंथ गीता में कुल 700 श्‍लोक हैं जिसमें से 574 श्‍लोक श्रीकृष्‍ण ने कहे हैं और 84 श्‍लोक अर्जुन के हैं। इसका महत्व बताते हुए खुद श्रीकृष्‍ण ने कहा है कि महापापी ने भी यदि इसका पाठ किया तो उसे मोक्ष प्राप्त होगा।
माना जाता है कि द्वापर युग में आज से करीब 5 हजार साल पहले श्रीकृष्‍ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्‍ण ने मार्गशीर्ष मास के शुक्‍लपक्ष की एकादशी को अर्जुन को ज्ञान का पाठ पढ़ाया। यही कारण है कि मार्गशीर्ष शुक्‍लपक्ष एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। गीता का कर्मयोग हमें सिखाता है कि जीवन के लिए, समाज-देश-विश्व के लिए कर्म करना आवश्यक है।
गीता में कहा गया है कि बिना कर्म के जीवन कुछ नहीं। मनुष्य को जो सिद्धि कर्म से मिलती है वो संन्यास से नहीं मिल सकती। यहां तक कि कर्म को भगवत चिंतन से भी श्रेष्ठ बताया गया है. श्रीकृष्ण ने एक अन्य श्लोक में कर्म की यह महत्ता बताई- तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च। मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्।।
भावार्थ- अर्जुन तुम मेरा चिंतन करो, लेकिन अपना कर्म करते रहो। श्रीकृष्ण कहते हैं कि अपना काम छोड़कर सिर्फ भगवान का नाम नहीं लेना चाहिए।

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