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जयपुर

204 वीं राजसी अंदाज में निकली हेड़े की परिक्रमा

श्री नृसिंह मंदिर से शुक्रवार सुबह गोपाल जी महाराज की 204 वीं हेड़े की परिक्रमा निकली।सुबह 6 बजे श्री नृसिंह जी के मंदिर से चारदीवारी मार्ग में विभिन्न मंदिरों के दर्शन करते हुए परिक्रमा दोपहर में गलता तीर्थ पहुंची। यहां विश्राम के बाद यह घाट की गूणी के नीचे स्थित फतेहचंद्रमाजी के मंदिर पहुंची।

जयपुरSep 03, 2022 / 03:46 pm

Kamlesh Sharma

 hede ki parikrama 2022

hede ki parikrama 2022

जयपुर. श्री नृसिंह मंदिर से शुक्रवार सुबह गोपाल जी महाराज की 204 वीं हेड़े की परिक्रमा निकली।सुबह 6 बजे श्री नृसिंह जी के मंदिर से चारदीवारी मार्ग में विभिन्न मंदिरों के दर्शन करते हुए परिक्रमा दोपहर में गलता तीर्थ पहुंची। यहां विश्राम के बाद यह घाट की गूणी के नीचे स्थित फतेहचंद्रमाजी के मंदिर पहुंची।

 

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समाज के महामंत्री कुंजबिहारी धोतीवाले ने बताया परंपरगत तरीके से निकलने वाली हेड़े की परिक्रमा छोटी काशी के बाशिंदों के लिए काफी मायने रखती है। करीब 202 साल पहले संवत् 1876 में अग्रवाल समाज के लोगों ने गोपालजी का मंदिर बनाकर गोपालजी की नगर परिक्रमा निकालना शुरू किया था। उस समय महाराजा जयसिंह स्वरूपों के दर्शन करने के लिए त्रिपोलिया गेट पर आते थे और स्वरूपों की आरती के बाद भगवान के सोने की गिन्नी भेंट करते थे। महाराजा ने परिक्रमा से प्रभावित होकर इस जयपुर की विरासत की उपाधि प्रदान की थी। यहां गोपालजी के स्वरूप को बहुमूल्य जेवर और पोशाक धारण करा चांदी की पालकी में विराजमान किया। इसके बाद इनकी आरती की गई।सुबह परिक्रमा निकली और शाम को ठाकुर जी ,राधारानी और दोनों सखियों ललिता और विशाखा के संग नगर भ्रमण पर निकले।

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जयपुर की प्राचीन विरासत साकार

आयोजन से जुड़े परिवार के लोगों ने परिक्रमा की शुरुआत की थी। इस परिक्रमा से अग्रवाल समाज के लोग बड़ी संख्या में जुड़े हुए हैं। परिक्रमा में घाट की गुणी स्थित फतेहचंद्रमाजी के मंदिर से स्वरूपों की झांकी को कड़ी सुरक्षा के साथ निकाले जाते हैं।

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चारों पालकियों को परंपरागत 200 साल पुरानी सोने की पोशाक और स्वर्ण आभूषण से सजे कांतिमय आभा बिखेर रहे थे। ठाकुर जी और राधारानी 400 किलो की चांदी की पालकी में विराजमान थे। वहीं दोनों सखिया 200 -200 किलो की पालकी में विराजमान रही। झांकी के साथ घुड़सवार पुलिस के जवानों के अलावा सशस्त्र पुलिस बल व पांच थानों का जाप्ता सुरक्षा में लगता है। पहले राज दरबार की ओर से कड़ी सुरक्षा की व्यवस्था की जाती थी और अब सरकार करती है।

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200 साल से भी ज्यादा पुरानी आठ- आठ किलो की पोशाकें और साथ में चांदी की पालकी में विराजित स्वरूपों की झांकी ।यहां से परिक्रमा गोपाल जी के रास्ता में पहुंची ही थी की इंद्रदेव ने जमकर स्वागत किया । झांकी के आगे भक्त मंडली कीर्तन और भजन करते हुए चल रही थी। सांगानेरी गेट पर परिक्रमा शोभायात्रा में परिवर्तित हो गई। गाजे-बाजे और लवाजमे के साथ निकली शोभायात्रा की मार्ग में विभिन्न व्यापार मंडलों सहित धार्मिक-सांस्कृतिक संस्थाओं की ओर से आरती की गई।

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चारदीवारी पर गलीयों में सफेद धोती कुर्ता के साथ सिर पर मोतिया रंग की गुलाबी पगड़ी हाथों में ढोलकी और मंजीरों के साथ भक्तों की टोली राधे राधे के भजनों कीर्तन करती गलीयो में स्थित मंदिरों के दर्शन करते गऐ बड़ी चौपड़ व त्रिपोलिया बाजार होते हुए रात्रि में शोभयात्रा गोपाल जी के रास्ते में पहुंची।

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हर मंदिरों में स्वरूपों की आरती की गई। विरासतकालीन इस दृश्य को देखने के लिए शहरवासियों का हुजूम नजर आया।

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जगह-जगह आरती कर परिक्रमा की अगवानी की गई। मंदिरों के महंतों ने भी पुष्पवर्षा कर स्वागत किया।

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