जयपुर

षटतिला एकादशी: विष्णु मंदिरों में सजी विशेष झांकी, दर्शन करने उमड़े श्रद्धालु

माघ कृष्ण एकादशी पर आज षटतिला एकादशी ध्रुव योग के संयोग में भक्तिभाव से मनाई गई। श्रद्धालुओं ने व्रत रखकर श्री हरि विष्णु की पूजा-अर्चना की।

जयपुरJan 25, 2025 / 02:40 pm

Devendra Singh

Shattila Ekadashi

जयपुर. माघ कृष्ण एकादशी पर आज षटतिला एकादशी ध्रुव योग के संयोग में भक्तिभाव से मनाई गई। श्रद्धालुओं ने व्रत रखकर श्री हरि विष्णु की पूजा-अर्चना की। वहीं आराध्य देव गोविंददेवजी, गोपीनाथजी, अक्षयपात्र के श्रीकृष्ण बलराम मंदिर सहित अन्य मंदिरों में ठाकुरजी के विशेष झांकी के दर्शन हुए। गोविंददेवजी मंदिर में मंगला झांकी से ही भक्तों की भीड़ देखने को मिली। अन्य मंदिरों में ठाकुरजी का पंचामृत अभिषेक कर नवीन पोशाक धारण कराई गई। ऋतु पुष्पों से शृंगार कर विशेष झांकी के दर्शन हुए।

तिल के व्यंजनों का लगाया भोग

आराध्य गोविंददेवजी मंदिर में महंत अंजन कुमार गोस्वामी के सान्निध्य में ठाकुरजी का अभिषेक कर राधा गोविंददेवजी को लाल रंग की पोशाक धारण कराकर गोचारण लीला के विशेष स्वर्णाभूषण धारण कराए गए। ठाकुरजी को तिल के व्यंजनों का भोग लगाया गया। सुबह मंदिर में ठाकुरजी के दर्शन करने बड़ी संख्या में लोग पहुंचे। पुरानी बस्ती स्थित मंदिर श्री राधा गोपीनाथजी में ठाकुरजी के गोचारण लीला की झांकी के दर्शन हुए। इस मौके पर मंदिर महंत सिद्धार्थ गोस्वामी के सान्निध्य में षटतिला एकादशी पर विशेष्र आयोजन हुआ।

पदों का गायन

पानों का दरीबा स्थित सरस निकुंज में महंत अलबेली माधुरी शरण के सान्निध्य में राधा सरस बिहारीजी के फूलों से विशेष शृंगार कर आकर्षक झांकी सजाई गई। इस दौरान एकादशी के पदों का गायन किया गया। इसके अलावा शहर के अन्य मंदिरों में एकादशी पर विशेष आयोजन हो रहे है। वहीं शहर के श्याम मंदिरों में एकादशी कीर्तन हो रहा है। कांवटियों का खुर्रा स्थित प्राचीन श्याम मंदिर में बाबा का विशेष शृंगार कर एकादशी का कीर्तन किया जा रहा है। वहीं भक्त तिल के व्यंजनों का दान भी कर रहे है। गोनेर स्थित लक्ष्मी जगदीश मंदिर में सुबह अभिषेक कर नवीन पोशाक धारण करवाई गई। दर्शन करने के लिए सुबह से ही श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा।

तिल के दान का विशेष महत्व

ज्योतिषविदों के मुताबिक इस दिन तिल के दान का विशेष महत्व है। पं. अक्षय शास्त्री के मुताबिक इस व्रत में तिल का छह तरह से इस्तेमाल किया जाता है इसलिए इसे षटतिला कहा जाता है। अगले दिन रविवार को तिल द्वादशी व्रत में भी भगवान विष्णु की पूजा की जाएगी और उन्हें तिल से बने व्यंजनों का भोग लगाया जाएगा।

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