धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं। ऐसे में सृष्टि का संचालन भगवान शिव के हाथों में रहता है। अधिकमास के कारण इस बार चातुर्मास चार की बजाय पांच महीने का होगा। सावन का महीना भगवान शिव को बहुत प्रिय है।
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भगवान भोलेनाथ का अनोखा मंदिर
सावन के पवित्र महीने में भगवान भोलेनाथ के एक ऐसे मंदिर के दर्शन करते है जहां के बारे में मान्यता है कि यहां पर शिवलिंग जमीन से प्रकट हुआ था। जयपुर-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर जयपुर से लगभग 40 किमी दूर आगरा रोड पर बांसखोह गाँव में स्थित नईनाथ धाम है। यहां के नईनाथ महादेव मंदिर के नामकरण की अनोखी कहानी है। शिवजी का ये मंदिर करीब 350 साल पुराना बताया गया है। मंदिर में स्थित शिवलिंग के बारे में कहा जाता है कि वह स्वयंभू प्रकट है।
सैकड़ों साल पहले बांसखोह में एक राजा थे जिनके तीन रानियां थी। विवाह के बाद भी इन तीनों के कोई संतान नहीं हुई। ऐसे में एक दिन एक रानी को सपने में शिवजी दिखाई दिए। इस पर तीनों रानिया पास ही जंगल में बने शिव मंदिर में गई, वहां शिवमंदिर में रह रहे बावलनाथ बाबा ने रानियों को शिव मंदिर में पूजा करने की सलाह दी। जिसके बाद सबसे छोटी रानी ने बाबा की बात को अमल किया और भोलनाथ की पूजा अर्चना करने लगी।
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रानी ने हर महीने अमावस्या की पूर्व चतुर्दशी को वीरान जंगल में स्थित इस प्राचीन शिव मंदिर में पूजा करने और व्रत करने का प्रण लिया। वह शाही सवारी के साथ मंदिर जाती और पूजा अर्चना कर लौटती। शाही सवारी को देखने के लिए भी लोगों की भीड़ जुटती थी। भोलेनाथ की पूजा अर्चना के बाद छोटी रानी के कुछ दिनों में एक संतान प्राप्त हुई। इसके बाद क्षेत्र में सबसे छोटी दुल्हन के लिए नई और बाबा बालवनाथ का नाथ जोड़कर कहा जाने लगा कि नई(रानी) पर नाथ यानि बालवनाथ(बाबा) की कृपा हुई है। बाद में यह स्थान नई का नाथ यानि नईनाथ के नाम से प्रचलित हो गया।
शिव मंदिर के पास बालवनाथ बाबा का धूना है। वहां उनके चरणों की पूजा होती है, लोग मन्नतें मांगते हैं। हर महीने अमावस्या से पहले चतुर्दशी को यहां मेले का आयोजन किया जाता है। नईनाथ के मंदिर में साल में दो बार, महाशिवरात्रि पर और श्रावण में मेले लगते हैं। इन दोनों मेलों में लाखों श्रद्धालु आते हैं।