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जयपुर

रामगढ की दास्तां : देख आए ‘मौत’ के कारण, किया कुछ नहीं, सर्वे में 3 विभागों ने माने अतिक्रमण, कार्रवाई के नाम पर मौन

रामगढ की दास्तां : देख आए ‘मौत’ के कारण, किया कुछ नहीं, सर्वे में 3 विभागों ने माने अतिक्रमण, कार्रवाई के नाम पर मौन

जयपुरMar 11, 2019 / 04:06 pm

rohit sharma

Saving Ramgarh Dam

Saving Ramgarh Dam

शरद विश्वास कुमार /जयपुर।

सरकार के विभिन्न विभागों ने अपने-अपने सर्वे में रामगढ़ बांध की ‘मौत’ के लिए अतिक्रमणों को जिम्मेदार माना लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ खास नहीं किया गया। बांध के कैचमेंट एरिया में एनिकट और जलस्रोतों के निर्माण पर धन खर्च करने को लेकर हाइकोर्ट ने खासी नाराजगी जताई थी। हाइकोर्ट ने इसे जनता के पैसे का दुरुपयोग माना और राज्य सरकार को ऐसे निर्माण से पहले जल की उपलब्धता देखने के निर्देश दिए थे।
राज्य में जल स्रोतों की दुर्दशा को देखते हुए राजस्थान हाइकोर्ट ने वर्ष 2012 में राज्य सरकार को आदेश जारी किए थे। इसमें सरकार को रामगढ़ बांध में पानी नहीं आने के कारण जानने, बहाव क्षेत्र में अतिक्रमण हटाने को कहा था। हाइकोर्ट ने कहा था कि जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) को मास्टर प्लान 2025 बनाने के दौरान जलस्रोतों के कैचमेंट एरिया में अतिक्रमण और अवैध निर्माण जैसी समस्या का सामना करना पड़ा है। कोर्ट के आदेश के बाद भी जयपुर के जलस्रोतों के संरक्षण के प्रयास नहीं किए गए। मात्र बीसलपुर बांध का पानी जयपुर लाने का काम हो पाया।
40% ही बचा सतही जल

हाइकोर्ट ने अपने आदेश में देश के विजन 2045 का उल्लेख किया था। कोर्ट ने कहा था कि देश में पूरे विश्व की जनसंख्या के 16 फीसदी लोग निवास करेंगे लेकिन जल संसाधन मात्र 4 फीसदी रह जाएंगे। इस विजन का मुख्य उद्देश्य लम्बे समय तक पानी की उपलब्धता और उपयोग बढ़ाना है। कोर्ट ने कहा कि जल क्षेत्र संबंधी कई प्रमुख चुनौतियां सामने आई हैं। वर्तमान जनसंख्या के मुकाबले जलस्रोतों की अनुपलब्धता बढ़ रही है। अनियमित जल वितरण के कारण सतही जल मात्र 40 फीसदी बचा है। मरम्मत में भारी अनियमितता के कारण वर्तमान के जलस्रोतों की क्षमता खासी प्रभावित हुई है। सरकारें नए जल प्रोजेक्ट के लिए पर्याप्त वित्तीय व्यवस्था नहीं कर रही हैं।
एनिकट-जलस्रोतों पर बर्बाद किया जनता का पैसा, हाइकोर्ट ने जताई थी नाराजगी
..रिपोर्ट पर दिखाई सख्ती

रामगढ़ बांध के मामले में हाइकोर्ट ने विभिन्न विभागों से मिली सर्वे रिपोर्ट पर खासी नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि विभागों ने कैचमेंट एरिया की सरकारी जमीन भी आवांटित कर दी, जो राजस्थान टेनेंसी एक्ट 1955 का सीधा उल्लंघन है। कैचमेंट एरिया में निर्माण और अतिक्रमण पर भी पर्याप्त कार्रवाई नहीं की गई। तमाम रिपोर्ट पर नाराजगी जाहिर करते हुए कोर्ट ने कहा कि क्षेत्र में अत्यधिक एनिकट बनने से पानी का बहाव रुका है। ये एनिकट बरसात के अलावा सूखे ही रहते हैं।
कोर्ट ने सख्त निर्देश दिए कि ऐसे एनिकट बनाकर सरकार जनता का पैसा बर्बाद न करे। साथ ही एक कमेटी गठित करे, जो क्षेत्र की वर्षा का आंकलन करे। उसके बाद ही एनिकट बनाए जाएं। क्षेत्र में जमीन आवंटन के मामले में संबंधित अधिकारियों की सूची कोर्ट ने मांगी, जो सीलबंद लिफाफे में पेश की गई।
किस विभाग की सर्वे रिपोर्ट में क्या

राजस्व विभाग : हाइकोर्ट को भेजी रिपोर्ट में राजस्व विभाग ने जमवारामगढ़ बांध के पूरे कैचमेंट एरिया में नामांतरण के मामलों में कानून का उल्लंघन सबसे ज्यादा होना बताया है। इसमें करीब 141 मामले थे, जिनका निरस्तारण किया जाना था लेकिन नहीं किया गया। कैचमेंट एरिया में 225 भूआवंटन किए गए, जिन्हें अब तक निरस्त नहीं किया गया है। विभाग ने क्षेत्र में अतिक्रमण का सर्वे किया और संबंधित को नोटिस जारी किए लेकिन कार्रवाई संबंधी कोई रिकॉर्ड कोर्ट को नहीं दिया गया।
सिंचाई विभाग : रामगढ़ बांध में आने वाले पानी के बहाव क्षेत्र का जायजा लेकर सिंचाई विभाग ने रिपोर्ट तैयार की। इसके लिए नियुक्त टीम ने बांध के कैचमेंट क्षेत्र के साथ बहाव क्षेत्र में एनिकट-जलस्रोतों और क्षेत्र में होने वाली बरसात का आंकलन भी किया। इसमें औसत बरसात में बढ़ोत्तरी और बांध में जल की आवक कम बताई गई। क्षेत्र में करीब 2 लाख हैक्टेयर भूमि पर खेती होती है। वर्तमान में किसान साल में 2-3 फसल उगा रहे हैं। इसके लिए बांध तक जाने वाले पानी को जगह-जगह रोका जा रहा है।
क्षेत्र में पानी का उपयोग जमवारामगढ़, आमेर, विराटनगर और शाहपुरा तहसील में हो रहा है। क्षेत्र में वाटर शेड कार्यक्रम के तहत 342 जल संरचनाओं का निर्माण किया गया है। पिछले तीस साल में सिंचाई, वन और पंचायत राज विभाग ने क्षेत्र में 24 बड़े एनिकट, 50 छोटे एनिकट, 138 बड़े तालाब और 194 छोटे तालाब बनाए जो खाली पड़े हैं। विभाग ने क्षेत्र की 235.83 हैक्टेयर जमीन पर अतिक्रमण बताया। यह भी माना कि नदी क्षेत्र में खेती हो रही है। सिंचाई विभाग की ओर से राजस्व विभाग को अतिक्रमण करने वालों की सूची देकर एफआइआर दर्ज कराकर कार्रवाई करने की अनुशंसा भी की।
वन विभाग : कैचमेंट एरिया में 28,204 हैक्टेयर भूमि बताई गई। इस भूमि को पौधरोपण की अनुपलब्धता, उपलब्धता और पौधरोपित क्षेत्र में बांटा है। विभाग ने क्षेत्र में 695 अतिक्रमण पाए, जिसकी सूची कोर्ट को दी गई। इसके बाद हुए अतिक्रमण और लोगों के विरोध के कारण हुए अतिक्रमण की 3 श्रेणियों में बांटा गया। क्षेत्र में 33 जगह अवैध खनन चिह्नित किए गए।
खनन विभाग : खान विभाग को क्षेत्र में कहीं भी अवैध खनन नहीं मिला। अचरोल, कालीघाटी और बुरहानपुर में ग्रामीणों द्वारा स्वयं के उपयोग के लिए खनन करना पाया गया। विभाग ने माना कि क्षेत्र में 199 लीज खनन के लिए दी गई हैं।
जयपुर विकास प्राधिकरण : जेडीए के अनुसार रामगढ़ बांध के कैंचमेंट एरिया में केवल आमेर का क्षेत्र उसके अधीन है। यहां 9 जगह अतिक्रमण पाया गया। इन मामलों में नोटिस देकर कार्रवाई की गई।
सुप्रीम कोर्ट ने भी जताई आपत्ति, लगाया था जुर्माना

सुप्रीम कोर्ट ने हाइकोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए निम्स प्रबंधन की याचिका खारिज कर दी। अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की ओर से गठित कमेटी की रिपोर्ट का हवाला दिया। कमेटी ने भूमाफिया, फार्म हाउस, क्लब हाउस, रिसोर्ट और प्रॉपर्टी डीलर्स के कारण रामगढ़ बांध के कैचमेंट एरिया के हालात खराब बताए थे। साथ ही निम्स की ओर से किए गए अतिक्रमण की भी जानकारी दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने निम्स के प्रकरण का उल्लेख करते हुए कहा कि निम्स ने वर्ष 2005 में खसरा नंबर 526 के संबंध में राज्य की तत्कालीन मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था। सीएम का इन मामलों में कोई सीधे हस्तक्षेप नहीं होता। निम्स ने इस पत्र के साथ कई बार संबंधित विभागों को भी जानकारी दी, जिस पर 10 साल तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। निम्स ने इसे मौन स्वीकृति मानते हुए निर्माण कर लिया।
मामले में निम्स ने हाइकोर्ट, जेडीए ट्रिब्यूनल, डीबी बैंच हाइकोर्ट में याचिका दायर की, जो खारिज कर दी गई। इस पर निम्स ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसे खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश के डीजीपी और जयपुर कलेक्टर को अतिक्रमण हटाने और इसका खर्चा निम्स से वसूलने के निर्देश दिए। साथ ही निम्स पर पिटीशन लगाने पर 10 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया।

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