दरअसल, होली से पहले गोवा के ग्रामीण बाबा माना गुरु का पांच दिनों तक स्तुति गान करते हैं। इसे वहां सिग्मोत्सव कहा जाता है। इसमें विभिन्न गांवों में बाबा माना गुरु के थान (चबूतरे) के सामने समई नृत्य करते हुए बाबा के गीत गाते हैं। इस चबूतरे पर कोई प्रतिमा तो नहीं होती, अलबत्ता तुलसी का एक पौधा लगा होता है। यह उत्सव होली के दिन पूर्ण होता है। इसके बाद सभी होली मनाते हैं।
वेशभूषा इस नृत्य में शामिल महिलाएं नौवारी साड़ी, बालों में गजरा, गले में बड़ा हार, चूड़ियां, नाक-कान के जेवर सहित पूर्ण श्रृंगार किए होती हैं। तो, पुरुष अमूमन पीला रेशमी कुर्ता, परपल कलर का पायजामा और सिर पर रिबन बांधते हैं।
गीत- इस नृत्य के दौरान नर्तक-नर्तकियां गोवा की स्थानीय भाषा में माना गुरु की स्तुति में गीत गाते हुए नाचती हैं। इस गीत का हिंदी में अर्थ, ’’अभी हम आए हैं, आपकी शरण में, आपका नाम लेकर कर रहे हैं नृत्य…’’ होता है। इस नृत्य में हारमोनियम, घूमट, झांझ, डफली, समेय (छड़ी से बजने वाला छोटा सा ड्रम) मुख्य वाद्ययंत्र इस्तेमाल होते हैं।