दूसरी बार कांग्रेस का दामन थामने से पहले मीडिया इंटरव्यू के दौरान जनार्दन गहलोत ने भाजपा में रहते हुए अपनी पीड़ा को साझा किया था। उन्होंने कहा था कि वसुंधरा राजे के विकास मॉडल और कार्यशैली से प्रभावित होकर ही उन्होंने भाजपा में एन्ट्री की थी।
इस दौरान हुए दो संसदीय चुनाव और दो विधानसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में जमकर प्रचार भी किया। लेकिन उसके बाद भी तवज्जो नहीं दी गई। इस कारण से उन्होंने भाजपा का भी साथ छोड़ने का फैसला लिया। तब गहलोत ने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और भाजपा संगठन पर कई तरह के आरोप भी लगाए थे।
5 हज़ार वोटों से ‘दिग्गज’ भैरोंसिंह को दी थी शिकस्त
एक समय था जब राजस्थान की राजनीति में भैरोंसिंह शेखावत जैसा कद्दावर नेता कोई नहीं था। विपक्षी पार्टी का कोई भी दिग्गज नेता उनके खिलाफ चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था। ऐसे में युवा जोश से भरपूर 26 साल के जनार्दन सिंह गहलोत ने 1972 में गांधी नगर विधानसभा चुनाव में उन्हें 5 हजार से ज्यादा वोटों से पराजित किया था। इसके बाद से गांधी परिवार में उनकी पैठ मजबूत हुई थी।
पुस्तक में किस्सा किया था साझा
जनार्दन गहलोत ने अपनी पुस्तक ‘संघर्ष से शिखर तक’ में भैरोंसिंह शेखावत के साथ चुनावी दंगल का दिलचस्प किस्सा साझा किया था। पुस्तक में उन्होंने बताया कि भैरोंसिंह का नाम पहले किशन पोल क्षेत्र से विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए लगभग फाइनल था। लेकिन उन्हें जैसे ही उन्हें ये पता चला कि गांधीनगर से युवा जनार्दन सिंह खड़ा है, तो उन्होंने यहां से चुनाव जीतना आसान समझा और गांधीनगर से ही टिकट ले लिया।
उन्होंने लिखा था कि भैरोंसिंह 1952 से लगातार विधायक बनते आ रहे थे लेकिन 1972 में मुझ से हारे थे। खास बात यह है कि 1967 में विधानसभा चुनाव के दौरान जनार्दन ने ही खुद बाबोसा का प्रचार भी किया था। तब उन्हें अंदाज़ा भी नहीं था कि जिनका प्रचार वो कर रहे हैं उन्हीं के खिलाफ चुनाव भी लड़ना पड़ जाएगा।
राजनीति: कांग्रेस से शुरू.. कांग्रेस से ख़त्म जनार्दन सिंह गहलोत, गहलोत सरकार के पहले कार्यकाल में कैबिनेट मंत्री रहे। 1980, 1990 और 1998 में विधायक रहे। इसके साथ ही वे अंतरराष्ट्रीय कबड्डी संघ के अध्यक्ष भी रहे। उनके निधन से समर्थकों में भी शौक व्याप्त है ।