सियासी जानकारों का कहना है कि मौजूदा परिस्थितियों में भले ही कांग्रेस को गठबंधन के जरिए इन सीटों पर फायदा मिला हो लेकिन भविष्य में सियासी नुकसान की भी आशंका है। क्योंकि गठबंधन प्रत्याशियों की जीत से छोटे-छोटे दलों के नेताओं के भी अब हौसले बुलंद है। ऐसे में भविष्य में गठबंधन को लेकर दबाव और ज्यादा बढ़ेगा।
गठबंधन के लिए विधानसभा उपचुनाव (Assembly by-elections) में क्या करेगी कांग्रेस?
डूंगरपुर-बांसवाड़ा सीट पर गठबंधन प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीते राजकुमार रौत चौरासी से बीएपी के विधायक भी हैं। वहीं, नागौर से चुनाव जीते हनुमान बेनीवाल खींवसर से रालोपा विधायक हैं। उनके सांसद चुने जाने के बाद अब इन दोनों सीटों पर भी उपचुनाव होंगे। ऐसे में अब चर्चा यह है कि क्या विधानसभा उपचुनाव में भी कांग्रेस गठबंधन धर्म का पालन करके करते हुए ये सीटें गठबंधन के तहत बीएपी और रालोपा के लिए छोड़ेगी या फिर अपने प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारेगी।
विरोध को दरकिनार कर किया था गठबंधन
इधर, टिकट वितरण के दौरान राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, भारत आदिवासी पार्टी और सीपीआईएम से गठबंधन को लेकर पार्टी में ही अंदर खाने विरोध के स्वर तेज हो गए थे। पार्टी के धड़े ने हाईकमान के यहां भी प्रदेश में गठबंधन नहीं करने और कांग्रेस प्रत्याशियों को ही चुनाव मैदान में उतरने की बात कही थी लेकिन विरोध को दरकिनार करते हुए गठबंधन किया गया।