राजस्थान के नाथद्वारा और उदयपुर में अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद मोहनलाल सुखाड़िया वीरमाता जीजाबाई टेक्नोलॉजीकल इंस्टीट्यूट से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा के लिए मुंबई के लिए चले गए। वहां मोहनलाल सुखाड़िया छात्र संगठन के महासचिव भी चुने गए।
कॉलेज में मोहनलाल सुखाड़िया देश के कई प्रमुख राष्ट्रीय नेताओं जैसे- सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभभाई पटेल, युसूफ मेहरली, अशोक मेहता के संपर्क में आए। उन्होंने कांग्रेस में हमेशा एक सक्रिय कार्यकर्ता की भूमिका निभाई।
कॉलेज पूरी होने के बाद उन्होंने नाथद्वारा ( Nathdwara ) में एक छोटी-सी इलेक्ट्रिक दुकान से व्यावसायिक जीवन शुरू किया। 1 जून, 1938 को मोहन लाल सुखाड़िया का इंदुबाला सुखाड़िया के साथ अंतर्जातीय विवाह किया। जिसका उन्हें विरोध पर झेलना पड़ा। उनके परिवार ने भी इसका घोर विरोध किया।
17 साल तक राजस्थान की कमान संभालने वाले मोहन लाल सुखाडिय़ा महज 38 साल की उम्र में मुख्यमंत्री बन गए थे। वे ऐसे राजनीतिज्ञ थे जो लगातार चार बार उदयपुर विधानसभा ( Udaipur Assembly ) से जीतकर जयपुर विधानसभा ( jaipur vidhan sabha ) में पहुंचे। स्व. सुखाडिय़ा ने उदयपुर शहर सीट पर चार बार विधायकी की कुर्सी हासिल करने का गौरव हासिल किया और उतनी ही बार वे प्रदेश के मुख्यमंत्री ( Rajasthan CM ) की कुर्सी पर आसीन हुए। मोहन लाल सुखाडिय़ा के नाम पर उदयपुर विश्वविद्यालय ( Udaipur University ) भी है। सन् 1984 में इसका नाम राजस्थान के भूतपूर्व मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाडिय़ा के नाम पर किया गया।
मोहनलाल सुखाड़िया की मृत्यु 2 फरवरी 1982 को राजस्थान के बीकानेर जिले में हुई। उनके निधन के बाद राजस्थान की राजनीति में शोक की लहर छा गई।