200 गांव और जोड़ने की तैयारी
-बीते दिनों जेडीसी मंजू राजपाल ने बाहरी जोन 11, 12, 13 और 14 के उपायुक्तों की बैठक ली। इसमें जेडीए रीजन में गांव शामिल करने की प्रक्रिया को लेकर चर्चा की है। माना जा रहा है कि गांव के नाम सत्यापित होंगे। चारों जोन में करीब 200 गांव और बढ़ने की संभावना है। इससे जेडीए रीजन में संभवतः करीब 925 गांव हो जाएंगे।
-जिन गांवों को शामिल किया जा रहा है, उनकी तहसीलों को जेडीए की ओर से पत्र लिखा गया है। इस पत्र में बताया गया है कि मास्टरप्लान-2047 में गांवों को सम्मिलित करने की प्रक्रिया की जा रही है।
यहां बड़े स्तर पर काम करने की जरूरत
-ड्रेनेज सिस्टम: योजना बनी, लेकिन उस पर काम नहीं हुआ
-विशेष क्षेत्र/विरासत संरक्षण योजना: विश्व विरासत परकोटा को संरक्षित करने में भी निगम पीछे ही है। नए निर्माण परेशानी का सबब बने हुए हैं
-क्षेत्रीय स्तर पर परिवहन योजना: बसों की संख्या कम होती जा रही है। मेट्रो का ट्रैक भी सीमित है
-विलेज डवलपमेंट प्लान: इस प्लान को लेकर कोई भी योजना धरातल पर नहीं उतरी
-जयपुर रीजन के लिए कैचमेंट एरिया प्लान: पानी के बहाव क्षेत्र को त्यों का त्यों रखना था, लेकिन जिम्मेदार महकमे ऐसा नहीं कर पाए। बहाव क्षेत्र में ही लोग मकान बनाकर रहने लगे
-चारदीवारी से भीड़भाड़ कम करने की योजना: इस योजना के तहत आतिश मार्केट को बाहर किया गया। ट्रांसपोर्ट नगर को भी दूर किया गया लेकिन वहां अब भी काफी काम करने जरूरत है
यहां थोड़ा बहुत काम
-पर्यावरण प्रबंधन योजना: पौधरोपण और इनका सालाना रखरखाव किया जा रहा है
–आवास विकास योजना: कच्ची बस्ती में रहने वाले सैकड़ों लोगों को पक्के मकान मिले हैं
-सिटी लैंडस्केप योजना: मानसरोवर में द्रव्यवती नदी किनारे लैंडस्केप पार्क विकसित किया गया। स्मार्ट सिटी के तहत किशनपोल बाजार में भी लैंडस्केपिंग की गई थी, लेकिन वह कारगर नहीं हो पाई। पूरे शहर में लैंडस्केपिंग को बढ़ावा देना चाहिए।
-डिजास्टर मैनेजमेंट प्लान: निकायों ने संसाधन खरीदे हैं। इससे स्थिति में पिछले कुछ वर्षों में थोड़ा सुधार हुआ है।
-जोनल डवलपमेंट प्लान, वाटर सप्लाई प्लान, विद्युत उत्पादन एवं वितरण योजना, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन योजना, भूमि सूचना और प्रबंधन रणनीति, वित्तपोषण रणनीतिक योजना और सार्वजनिक सुविधा योजना पर विभिन्न सरकारी महकमों ने काम किया है।
मास्टरप्लान का क्रियान्वयन जरूरी
राजस्थान सरकार के प्लान तो अच्छे हैं, लेकिन उनका क्रियान्वयन बेहद खराब है। शहरों में आधारभूत संरचना बनाने में करोड़ों रुपए खर्च होते हैं। नीतियों में बदलाव करने की जरूरत है।
-चंद्रशेखर पाराशर, पूर्व अतिरिक्त मुख्य नगर नियोजक