मुमुक्षु सुरभि की रविवार को शहर में शोभायात्रा निकाली गई। इस अवसर पर शहर के लोगों ने मुमुक्षु के संयम का मार्ग अपनाने की सराहना करते हुए उन्हें नमन किया। हुक्मगच्छीय साधुमार्गी स्थानकवासी जैन श्रावक संस्थान की ओर से दो दिवसीय समारोह के तहत रविवार को पंचायती नोहरे से शोभायात्रा निकाली गई।
संस्थान मंत्री डॉ. सुभाष कोठारी ने बताया कि शोभायात्रा में सबसे आगे 21 बाइक सवार युवाओं ने कमान संभाली। इसके बाद पांच घोड़ों पर सवार युवाओं ने पताका फहराई। उनके पीछे पांच बग्घियां शामिल थीं। एक बग्घी में बैठी मुमुक्षु सुरभि बिकानेरिया सभी का अभिवादन स्वीकार कर रही थी, वहीं उसके माता-पिता लक्ष्मीलाल-चंदादेवी बिकानेरिया ने चंवर ढुलाए। दूसरी बग्गी में अहमदाबाद की मुमुक्षु मैताली भंडारी और उसके माता-पिता सवार हुए। तीसरी, चौथी और पांचवीं बग्घी में शोभायात्रा गौरव फतहलाल-मोहनदेवी जैन, गौरव सुरेंद्रसिंह हरकावत, शोभायात्रा गौरव कमलादेवी कोठारी बैठे थे। उनके पीछे एक हजार से ज्यादा समाजजन शामिल हुए, जो भगवान महावीर और जैनचार्यों के जयकारे लगाते चल रहे थे। दो बैंड से भक्ति स्वर लहरियां गूंज रही थी, वहीं खासतौर पर पदमावती भक्ति मंडल ने भक्ति प्रस्तुतियां दी। शोभायात्रा शहर के विभिन्न मार्गों से होते हुए ओसवाल भवन पहुंची।
जनप्रतिनिधियों ने किया स्वागत
शोभायात्रा के बड़ा बाजार पहुंचने पर गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया, महापौर चंद्रसिंह कोठारी, भंवर सेठ, राजकुमार फत्तावत ने मुमुक्षु का स्वागत किया। संस्थान की ओर से जनप्रतिनिधियों का सम्मान किया गया।
कांटों भरा मार्ग
शोभायात्रा से पहले पंचायती नोहरे में सुबह 9.15 बजे प्रवचन हुए। साध्वी विजयलक्ष्मी, साध्वी इंदुप्रभा के प्रवचन हुए। उन्होंने कहा कि संयम कांटो भरा मार्ग है। जो कांटों पर चल सके, उसे ही संयम मार्ग चुनना चाहिए। उन्होंने कहा कि सुरभि के संयम से प्रेरित होकर सभी समाजजन कुछ त्याग की अनुमोदना करें।
कॉलेज में रहते ही छोड़ दी चप्पल
सुरभि ने गुरु नानक गल्र्स कॉलेज से स्नातक किया। वैराग्य की भावना के चलते उसने कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही चप्पल पहनना छोड़ दिया था। अभिनंदन समारोह के मौके पर सुरभि के शिक्षकों की भी मौजूदगी रही। सुरभि के वैराग्य की परीक्षा उसके परिजनों ने भी ली। लेकिन सुरभि ने नियम की पूरी पालना की।
मुमुक्षु सुरभि के विचार
मुमुक्षु सुरभि बताती है कि वे अगर दीक्षा नहीं लेती तो डॉक्टरेट करती। बारह साल पहले 2004 में हिरण मगरी सेक्टर तीन में साध्वी अनोखा कंवर का चातुर्मास था। दीपावली के आसपास आध्यात्मिक शिविर लगा। वहीं से वैराग्य की प्रेरणा मिली। इसके बाद 2006 में अन्य साधु-साध्वियों के चातुर्मास के दौरान वैराग्य का अंकुरण हुआ। लगातार दस साल तक साधु-साध्वियों के संपर्क में रहते हुए जैन धर्म के नियमों का पालन किया। राजस्थान और दक्षिण भारत में एक हजार किलोमीटर तक पद यात्राएं की। वर्षीतप के एकासना किया।
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