समय की कमी होने के कारण आजकल हर रिश्तों को सेलिब्रेट करने के लिए जो दिन तय है, उन्हें जोरो शोरो से मनाने का ट्रेंड चल गया है, ऐसे में ग्रैंडपैरेंट्स डे का ट्रेंड भी कुछ सालों से ज्यादा देखने को मिल रहा है। बता दें माता पिता के साथ पल रहे बच्चों की तुलना में ग्रैंडपैरेंट्स के साथ पल रहे बच्चे मानसिक रूप से ज्यादा स्ट्रांग और संस्कारी होते है। ग्रैंडपैरेंट्स का दिन सितंबर के दूसरे रविवार को मनाया जाता है। इस दिन को बच्चों के जीवन में दादा-दादी के योगदान की सराहना करने के रूप में भी देखा जा सकता है।
कैसे हुई इस दिन की शुरुआत
इस दिन की शुरआत अमेरिका से हुई, दरअसल मैरियन मैकुडे नाम की महिला के 43 नाती-पोते थे और वह उनके इस रिलेशन को दुनिया में पहचान दिलाना चाहती थी। इसलिए उन्होंने 1970 में एक अभियान चलाया जो 9 साल बाद 1979 में सफल हुआ। अमेरिका के प्रेसिडेंट ने सितम्बर के पहले रविवार को यह दिन घोषित किया। ताकि छुट्टी के दिन ग्रैंडपैरेंट्स और ग्रैंडचिल्ड्रन एक अच्छा समय व्यतीत कर पाए।
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ग्रैंडचिल्ड्रन-ग्रैंडपैरेंट्स की वर्चुअल दुनिया
अच्छी शिक्षा और रोजगार के लिए लोग शहरों की ओर रुख कर रहे हैं। ऐसे में बच्चे अपने दादा-दादी से दूर हो रहे हैं। दिन में कई बार ऐसे मौके आते हैं जब बच्चों को दादा-दादी की कमी खलती है। हालांकि, कई बच्चे ऐसे भी हैं, जो वाट्सऐप के जरिए अपने दादा-दादी सम्पर्क करते हैं। राजधानी में रहने वाले एकल परिवारों से जब बातचीत की तो सामने आया कि कई बार तो घर में बड़ों की बहुत जरूरत महसूस होती है।
1. इटावा से आकर जयपुर में रह रहे राजेश अलवानी के एक बेटा और एक बेटी है। रोजगार के सिलसिले में राजेश जयपुर में बस गए। आस-पास कई ऐसे परिवार रहते हैं, जिनके घर में बुजुर्ग हैं। राजेश के बेटा-बेटी तीन से चार माह में अपने दादा-दादी से मिलने इटावा जाते हैं।
2. दादा-दादी से बात करना दिनचर्या का हिस्सा: मूलरूप से नोएडा के जेवर के रहने वाले मनोज शर्मा एक पब्लिकेशन में काम करते हैं। उनके दो बेटी और एक बेटा है। परिवार के बाकी सदस्य जेवर में एक साथ रहते हैं। ऐसे में खुशी, यशी और लक्ष्य का दादा-दादी से बात करना दिनचर्या का हिस्सा है।
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राजस्थान की 74 सदस्यों की जॉइंट फॅमिली, रात को कहानी सुने बिना नहीं सोते
जॉइंट फॅमिली में रहने वाले बच्चे अपने दादा-दादी के साथ न केवल बचपन का आनंद ले रहे हैं, बल्कि जीवन में अनुशासन, एकता, अपनत्व और सहनशक्ति जैसे गुणों का विकास भी कर रहे हैं। बीकानेर में जोशीवाड़ा निवासी रमण जोशी परिवार एक ऐसी जॉइंट फॅमिली है, जिसमें न केवल चार पीढ़ी के सदस्य एक साथ रह रहे हैं, बल्कि इस परिवार के बच्चे और युवा अपने दादा-दादी के मार्गदर्शन, वात्सल्य में आगे बढ़ रहे हैं। परिवार में सदस्यों की संख्या 74 हैं। रोज रात को बच्चे दादा-दादी से कहानियां सुनते हैं। युवा सदस्य अपने दादा-दादी से उनके जीवन के संघर्षों से सीख लेकर लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं। परिवार में 18 वर्ष से कम आयु के 14 बच्चे हैं। इन बच्चों के रुठने, मनाने, हंसने, खेलने से रोज घर में खुशियों का माहौल बना रहता है। एक ही चूल्हे पर परिवार के सभी सदस्यों का भोजन बनता है।
कहानियों का पड़ता है प्रभाव
संयुक्त परिवार और दादा-दादी के बीच रहने वाले बच्चों पर बुजुर्ग से मिले प्यार और उनकी कहानियों का बड़ा प्रभाव पड़ता है। इससे उनमें नैतिक मूल्यों का इजाफा होता है। हमारे संस्कार उनके साथ चलते हैं। एकल परिवार में भावनाओं का आदान-प्रदान अधिक नहीं हो पाता। यह सब बातें कहीं न कहीं व्यक्ति के मानसिक तनाव को कम करने का काम करती है। एकल परिवार में माता-पिता बच्चों को उतना समय नहीं दे पाते, लेकिन दादा-दादी की मौजूदगी बच्चों को सकारात्मक, मजबूती देती है। उनका समग्र विकास भी तेजी से होता है।
-डॉ. अखिलेश जैन, विभागाध्यक्ष, मनोरोग, ईएसआईसी अस्पताल, जयपुर