दरअसल, लोकल स्तर पर लोकल उत्पादों की बिक्री और उन्हें बढ़ावा देने के लिए रेलवे ने दो वर्ष पूर्व देशभर में वन स्टेशन-वन प्रोडक्ट योजना शुरू की थी। जो उत्तर पश्चिम रेलवे के करीब 450 में से 300 से प्रमुख बड़े रेलवे स्टेशन पर शुरू होनी थी, जो महज 104
रेलवे स्टेशनों पर ही सिमट कर रह गई है। जयपुर की बात करे तो, यहां जयपुर जंक्शन और दुर्गापुरा स्टेशन पर ही यह स्टॉल संचालित हो रही है जबकि गांधीनगर स्टेशन पर लंबे समय से ताले लटका हुआ है। दूसरी, ओर जिन स्टेशनों पर लगी हुई है, वहां भी ज्यादा यात्री नहीं पहुंच पा रहे हैं।
नियमों में बदलाव हुए लेकिन नाकाफी
इस योजना के लोकप्रिय नहीं होने के पीछे नियमों का बंधन मुख्य कारण बताए जा रहे हैं। एक स्टॉल संचालक ने बताया कि शुरुआत में यह स्टॉल्स महज 15 दिन के लिए आवंटित की जा रही थी। कुछ समय पूर्व उसकी अवधि में विस्तार किया गया है। यानी अब यह तीन माह के लिए आवंटित हो रही है लेकिन यह समय भी कम है। क्योंकि किसी स्टॉल्स को जमाने या उत्पाद को लोकप्रिय करने के लिए कम से कम छह महीने या एक साल का समय चाहिए होता है। जब तक उत्पाद की डिमांड आने लगती है तब तब आवंटन समय पूरा हो जाता है।
स्टॉल्स में यह हो रहे बिक्री
इस योजना के तहत स्टेशन पर लगने वाली स्टॉल्स से यात्री सांगानेरी प्रिंट, जयपुरी रजाइयां, बंधेज की साडियां, मेटल हैंडीक्राफ्ट आइटम, चिकनी मिट्टी के बर्तन, स्थानीय मिठाई, खादी कपड़े, मार्बल के स्टेच्यू, गुलाब जल, गुलकंद, मेहंदी, कोटा डोरिया, खिलौने, नमकीन, पापड़, भुजिया आदि सामान की बिक्री की जा रही है।
इसलिए यात्री भी नहीं पहुंच पा रहे
वन स्टेशन वन प्रोडक्ट योजन की स्टॉल एक स्टेशन पर एक ही आवंटित की जा रही है। दूसरी बार छोटे स्टेशनों पर ट्रेनों के ठहराव का समय ही कम होता है। इसलिए उस स्टेशन से गुजरने वाली ट्रेनों के यात्री ट्रेन से उतरकर खरीददारी कर नहीं पाते हैं। जो उस स्टेशन से आवाजाही करते हैं, उनके लिए वो लोकल ही होता है। इसलिए स्टॉल्स तक यात्री कम पहुंच पा रहे हैं। सूत्रों की माने तो, इसकी आंवटन प्रक्रिया में बदलाव होना चाहिए।