नोडल एजेंसी का रोल अकादमी को झांकी बनवाने की जिम्मेदारी कला, संस्कृति विभाग की होती है और हर साल ही तरह विभाग यह जिम्मेदारी राजस्थान ललित कला अकादमी को देता है। इसके लिए अकादमी को नोडल एजेंसी बनाई जाती है। दिल्ली में रक्षा मंत्रालय में झांकी से संबंधित सभी मिटिंग्स में अकादमी के प्रतिनिधि ही हिस्सा लेते हैं। ऐसे में पिछले सालों में की गई प्लानिंग पर भी सवाल उठ रहे हैं। इस बार गांधी के 150वीं जयंती के उपलक्ष्य पर सभी राज्यों को गांधी पर ही झांकी की डिजाइन बनाने के आदेश मिले थे और अकादमी में जयपुर की वरिष्ठ कलाकार की डिजाइन को अपू्रव किया था। इस डिजाइन को रक्षा मंत्रालय की जूरी ने परेड में शामिल अन्य झाकियों के साथ शामिल नहीं किया है।
पहले बजट के अभाव में रूकती थी झांकी विभाग से मिली जानकारी के अनुसार 1997 में शाही रेलगाडी की झांकी राजस्थान से निकली थी। 1998 में महाराणा प्रताप व कुंभलगढ़ दुर्ग की झांकी रिजेक्ट हुई थी। 1999 में उदयपुर की गणगौर और 2000 में राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर एवं तीज त्योहार की झांकी प्रदर्शित हुई। 2001 में मरू रंगों की बहार व सोनार किला जैसलमेर की झांकी परेड में शामिल हुई और इस झांकी को प्रथम पुरस्कार भी मिला। 2002 में विषय चयनित नहीं हुआ, 2003 और 2004 में बजट के अभाव में झांकी राजपथ तक नहीं पहुंची। 2005 में चित्तोड़ का विजय स्तंभ एवं मीरा मंदर की झांकी निकली, 2006 में विषय चयनित नहीं हुआ, 2007 में रक्षा मंत्रालय ने मॉडल अस्वीकार किया। 2008 में भी बजट का अभाव, 2009 में रणभम्भौर-इतिहास, प्रकृति और वन्य जीव पर झांकी प्रदर्शित हुई। 2010 में जयपुर की वेधशाला, स्थापत्य और सांस्कृति धरोहर पर झांकी प्रदर्शित हुई। 2011 में बजट के अभाव में झांकी नहीं निकल पाई। 2012 में आमेर फोर्ट और 2013 में बूंदी चित्रशाला शामिल हुई। इस साल सैकंड प्राइज भी मिला। 2014 में कावड़ और 2016 में हवामहल की झांकी निकली, इसके बाद अब तक झांकी नहीं निकल पाई है।
इनका कहना है
दिल्ली में रक्षा मंत्रालय से राजस्थान की झांकी को अपू्रवल नहीं मिल पाई है। डिजाइन में कुछ करेक्शन के बाद भी नाम नहीं आया है। इस बार विषय गांधी पर ही केन्द्रित था, ऐसे में हमने राजस्थान और गांधी को ध्यान में रखते हुए डिजाइन बनाई थी।
डॉ. सुरेन्द्र सोनी, सचिव, राजस्थान ललित कला अकादमी