निर्भया कांड के बाद देश में बेटियों की सुरक्षा के लिए सरकार ने कई कदम उठाए। इसके बावजूद बेटियों के साथ बलात्कार, हत्या, छेड़छाड़ जैसी घटनाएं कम नहीं हो रही है। इसके पीछे की वजह केन्द्र व राज्य सरकारों की लापरवाही है। सरकार ने फंड बनाकर राशि दे दी, लेकिन योजनाएं बनाकर इसको खर्च करने में सरकारें भूल गई। यही वजह है कि कहने को निर्भया फंड में हर साल करोड़ों रुपए दिए जा रहे हैं, लेकिन बिना काम के यह राशि सरकारों के पास पड़ी हुई है। करीब 25 राज्यों ने फंड की 40 फीसदी राशि भी खर्च नहीं की है। जबकि तमिल नाडू ने सर्वाधिक 87.6 फीसदी और दिल्ली ने 86.19 फीसदी राशि खर्च की है।
-अगर ऐसा हो जाता तो शायद बेटियां सुरक्षित हो जाए
निर्भया फंड के तहत बेटियों की सुरक्षा के लिए राज्य कई कार्य करवा सकते हैं। 1. वन स्टॉप सेंटर: ऐसा सेंटर जो किसी अस्पताल के दो किलोमीटर के दायरे में बनाना है। जहां पीडि़त महिला को अस्थायी आश्रय देने के साथ उपचार, पुलिस, कांउसिंग और कानूनी मदद एक साथ दी जा सकती है।
हकीकत: उत्तरप्रदेश में पिछले 5 साल में 1.44 लाख, राजस्थान में 8409 और मध्यप्रदेश में 19510 मामले आए हैं। 2. महिला हैल्पलाइन: पीडि़त महिला को 181 के माध्यम से तत्काल और 24 घंटे आपातकालीन व गैर आपातकालीन सुविधा हर जिले में दी जाती है।
हकीकत: उत्तरप्रदेश में पिछले 5 साल में 4.87 लाख महिलाओं और राजस्थान में सिर्फ 11093 महिलाओं ने मदद मांगी। मध्यप्रदेश ने केन्द्र को यह आंकड़ा ही नहीं दिया है। 3. महिला पुलिस स्वयंसेवक: पुलिस और समाज के बीच सेतु का कार्य, जो पीडि़त महिलाओं की मदद करती है। प्रयोग के तौर पर प्रत्येक राज्य के दो जिलों का चयन किया गया है।
हकीकत: छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, गुजरात, हरियाणा और मिजोरम के अलावा किसी भी राज्य में ऐसे स्वयंसेवक नहीं बनाए गए हैं। -एमपी, राजस्थान, यूपी के हाल खराब
(आवंटित और खर्च राशि करोड़ रुपए में है)
राज्य कुल आवंटित खर्च प्रतिशत
उत्तर प्रदेश 324.98 216.75 66
राजस्थान 69.11 28.58 40
एमपी 123.37 42.72 34
इन राज्यों में 70 फीसदी से अधिक काम (राशि करोड़ रुपए में) राज्य—-स्वीकृत——–खर्च तमिलनाडू—-303.06—-265.53
दिल्ली—-409.03—-352.58
गुजरात—-153.73—-120.58
कर्नाटक—-260.28—-198.95
तेलांगना—-182.30—-135.82